लफ़्ज़ों का साएबान बना लेने दीजिए
लफ़्ज़ों का साएबान बना लेने दीजिए
सायों को ताक़-ए-दिल में सजा लेने दीजिए
गहरे समुंदरों की तहें मत खंगालिए
दिल को खुली हवा का मज़ा लेने दीजिए
सोचेगा ज़ेहन सारे मसाइल के हल मगर
पहले बदन की आग बुझा लेने दीजिए
कब तक मिसाल-ए-दश्त सहें मौसमों का जब्र
ख़्वाबों का कोई शहर बसा लेने दीजिए
यादों के खेत सूख चले अब तो 'जाफ़री'
ताज़ा ग़मों की फ़स्ल उगा लेने दीजिए
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