शाखा Poetry (page 23)

कमाँ अबरू निपट शह-ज़ोर हैगा

अब्दुल वहाब यकरू

इस तरह रुख़ फेरते हो सुनते ही बोसे की बात

अब्दुल वहाब यकरू

ऐ मेरी आँखो ये बे-सूद जुस्तुजू कैसी

अब्दुल वहाब सुख़न

अजीब शय है कि सूरत बदलती जाती है

अब्दुल हमीद

इबलाग़

अब्दुल अहद साज़

ये वाहिमे भी अजब बाम-ओ-दर बनाते हैं

अब्बास ताबिश

ये हम जो हिज्र में उस का ख़याल बाँधते हैं

अब्बास ताबिश

ये हम जो हिज्र में उस का ख़याल बाँधते हैं

अब्बास ताबिश

एक क़दम तेग़ पे और एक शरर पर रक्खा

अब्बास ताबिश

वफ़ा और इश्क़ के रिश्ते बड़े ख़ुश-रंग होते हैं

आज़िम कोहली

थी याद किस दयार की जो आ के यूँ रुला गई

आज़िम कोहली

तिरी दोस्ती का कमाल था मुझे ख़ौफ़ था न मलाल था

आतिफ़ वहीद 'यासिर'

रुमूज़-ए-मस्लहत को ज़ेहन पर तारी नहीं करता

आसी करनाली

अरक़ जब उस परी के चेहरा-ए-पुर-नूर से टपके

आरिफ़ुद्दीन आजिज़

टीपू की आवाज़

आल-ए-अहमद सूरूर

ख़ुदा-परस्त मिले और न बुत-परस्त मिले

आल-ए-अहमद सूरूर

दो अजनबी

आदिल रज़ा मंसूरी

वहाँ शायद कोई बैठा हुआ है

आदिल रज़ा मंसूरी

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