शाखा Poetry (page 2)

गर्म लहू का सोना भी है सरसों की उजयाली में

ज़ेब ग़ौरी

इक पीली चमकीली चिड़िया काली आँख नशीली सी

ज़ेब ग़ौरी

किसी भी शाख़ पर पत्ता नहीं है

ज़मान कंजाही

तिरी यादों ने तन्हा कर दिया है

ज़मान कंजाही

फ़िक्र में डूबे थे सब और बा-हुनर कोई न था

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

मिरे लोगो! मैं ख़ाली हाथ आया हूँ

ज़ाहिद मसूद

वो बहर-ओ-बर में नहीं और न आसमाँ में है

ज़ाहिद चौधरी

चमन में सैर-ए-गुल को जब कभी वो मह-जबीं निकले

ज़ाहिद चौधरी

परवाना जल के साहब-ए-किरदार बन गया

ज़हीर काश्मीरी

हर ग़ज़ल हर शेर अपना इस्तिआरा-आश्ना

ज़हीर ग़ाज़ीपुरी

कारवाँ से जो भी बिछड़ा गर्द-ए-सहरा हो गया

ज़फ़र मुरादाबादी

रात भर सूरज के बन कर हम-सफ़र वापस हुए

ज़फ़र मुरादाबादी

सहरा का सफ़र था तो शजर क्यूँ नहीं आया

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

तिरे रास्तों से जभी गुज़र नहीं कर रहा

ज़फ़र इक़बाल

पाए हुए इस वक़्त को खोना ही बहुत है

ज़फ़र इक़बाल

इसे मंज़ूर नहीं छोड़ झगड़ता क्या है

ज़फ़र इक़बाल

हम ने आवाज़ न दी बर्ग ओ नवा होते हुए

ज़फ़र इक़बाल

दरिया दूर नहीं और प्यासा रह सकता हूँ

ज़फ़र इक़बाल

चमकती वुसअतों में जो गुल-ए-सहरा खिला है

ज़फ़र इक़बाल

बिखर बिखर गए अल्फ़ाज़ से अदा न हुए

ज़फ़र इक़बाल

बहुत सुलझी हुई बातों को भी उलझाए रखते हैं

ज़फ़र इक़बाल

फ़स्ल-ए-गुल को ज़िद है ज़ख़्म दिल का हरा कैसे हो

ज़फ़र गौरी

तामीर-ए-ज़िंदगी को नुमायाँ किया गया

यूसुफ़ ज़फ़र

मुझे आगही का निशाँ समझ के मिटाओ मत

यासमीन हामिद

आज भी ज़ख़्म ही खिलते हैं सर-ए-शाख़-ए-निहाल

याक़ूब यावर

रौशनी मेरे चराग़ों की धरी रहना थी

याक़ूब यावर

हर एक गाम पे इक बुत बनाना चाहा है

याक़ूब तसव्वुर

देख कर ख़ुश-रंग उस गुल-पैरहन के हाथ पाँव

वज़ीर अली सबा लखनवी

दरमाँदा

वज़ीर आग़ा

सफ़ेद फूल मिले शाख़-ए-सीम-बर के मुझे

वज़ीर आग़ा

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