शाखा Poetry (page 3)
हमारा अज़्म-ए-सफ़र कब किधर का हो जाए
वसीम बरेलवी
ऐ हम-दमाँ भुलाओ न तुम याद-ए-रफ़्तगाँ
वलीउल्लाह मुहिब
जान उस की अदाओं पर निकलती ही रहेगी
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
आह-ए-शब नाला-ए-सहर ले कर
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
पचासी साल नीचे गिर गए
वहीद अहमद
बना कर ख़ुद को जिस ने इक भला इंसान रक्खा है
वली मदनी
तमाम रात वो जागा किसी के वा'दे पर
वफ़ा मलिकपुरी
बाहर बाहर सन्नाटा है अंदर अंदर शोर बहुत
उमर अंसारी
देखा है कहीं रंग-ए-सहर वक़्त से पहले
तुर्फ़ा क़ुरैशी
दिल था पहलू में तो कहते थे तमन्ना क्या है
तौसीफ़ तबस्सुम
बजा कि दरपय-ए-आज़ार चश्म-ए-तर है बहुत
तौसीफ़ तबस्सुम
सूरत-ए-इश्क़ बदलता नहीं तू भी मैं भी
तौक़ीर तक़ी
कहीं शुऊर में सदियों का ख़ौफ़ ज़िंदा था
तौक़ीर तक़ी
बदन में रूह की तर्सील करने वाले लोग
तौक़ीर तक़ी
रुख़ से नक़ाब उन के जो हटती चली गई
तौक़ीर अहमद
मिरे चारा-गर तुझे क्या ख़बर, जो अज़ाब-ए-हिज्र-ओ-विसाल है
तसनीम आबिदी
तरीक़ कोई न आया मुझे ज़माने का
तनवीर अंजुम
ये बात दश्त-ए-वफ़ा की नहीं चमन की है
तनवीर अहमद अल्वी
हर अश्क तिरी याद का नक़्श-ए-कफ़-ए-पा है
तख़्त सिंह
एक एक क़तरा उस का शो'ला-फ़िशाँ सा है
तख़्त सिंह
पत्ता पत्ता शाख़ से टूटे दरवाज़ों पे वहशत सी
ताज सईद
बंद दरीचों के कमरे से पूर्वा यूँ टकराई है
ताज सईद
न नींद और न ख़्वाबों से आँख भरनी है
तहज़ीब हाफ़ी
जब मिरे होंटों पे मेरी तिश्नगी रह जाएगी
ताहिर फ़राज़
हर इक दाग़-ए-दिल शम्अ' साँ देखता हूँ
ताबिश देहलवी
हमा-तन गोश इक ज़माना था
ताबिश देहलवी
तुम्हीं बताओ पुकारा है बार बार किसे
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
तुम्हीं बताओ पुकारा है बार बार किसे
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
हम एक उम्र जले शम-ए-रहगुज़र की तरह
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
हम एक उम्र जले शम-ए-रहगुज़र की तरह
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
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