शाखा Poetry (page 5)

तिरे आते ही सब दुनिया जवाँ मालूम होती है

सिकंदर अली वज्द

ग़मगीन बे-मज़ा बड़ी तन्हा उदास है

सिदरा सहर इमरान

मौज-ए-ख़याल-ए-यार ग़म-ए-आसार आई है

सिद्दीक़ मुजीबी

शहर-ए-एहसास में ज़ख़्मों के ख़रीदार बहुत

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

हर चंद कि प्यारा था मैं सूरज की नज़र का

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

न देखा जामा-ए-ख़ुद-रफ़्तगी उतार के भी

सिद्दीक़ शाहिद

चेहरे पे थोड़ी रक्खी है

शुजा ख़ावर

मालूम नहीं क्यूँ

शोरिश काश्मीरी

लेते हैं समर शाख़-ए-समरवर को झुका कर

ज़ौक़

ज़ख़्मी हूँ तिरे नावक-ए-दुज़-दीदा-नज़र से

ज़ौक़

न करता ज़ब्त मैं नाला तो फिर ऐसा धुआँ होता

ज़ौक़

नींद उजड़ी तो निगाहों में मनाज़िर क्या हैं

शहपर रसूल

रीत पर जितने भी नविश्ते हैं

शीन काफ़ निज़ाम

मेरे अल्फ़ाज़ में असर रख दे

शीन काफ़ निज़ाम

बे-नंग-ओ-नाम

शाज़ तमकनत

सँभला नहीं दिल तुझ से बिछड़ कर कई दिन तक

शाज़ तमकनत

बर्बाद गुलिस्ताँ करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी था

शौक़ बहराइची

ग़ज़ल वही है जो हो शाख़-ए-गुल-निशाँ की तरह

शारिक़ ईरायानी

जो अपने सर पे सर-ए-शाख़-ए-आशियाँ गुज़री

शरीफ़ कुंजाही

फ़ज़ा-ए-सेहन-ए-गुलिस्ताँ है सोगवार अभी

शरीफ़ कुंजाही

अब किसी शाख़ पे हिलता नहीं पत्ता कोई

शरीफ़ कुंजाही

अपनी हस्ती को अंधे कुएँ में गिराना नहीं चाहता

शनावर इस्हाक़

बैत-ए-अंकबूत

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

ये अर्ज़-ओ-समा क़ुलज़ुम-ओ-सहरा मुतहर्रिक

शम्स रम्ज़ी

हमीं थे ऐसे सर-फिरे हमीं थे ऐसे मनचले

शमीम करहानी

वो एक शोर सा ज़िंदाँ में रात भर क्या था

शमीम हनफ़ी

सफ़र नसीब अगर हो तो ये बदन क्यूँ है

शमीम हनफ़ी

आसमाँ का रंग मेरी ज़ात में घुल जाएगा

शमीम फ़ारूक़ी

लदी है फूलों से फिर भी उदास लगती है

शकील शम्सी

बीत गया हंगाम-ए-क़यामत रोज़-ए-क़यामत आज भी है

शकील बदायुनी

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