शमा Poetry (page 13)

वाक़िफ़ ख़ुद अपनी चश्म-ए-गुरेज़ाँ से कौन है

साबिर ज़फ़र

नए कपड़े बदल और बाल बना तिरे चाहने वाले और भी हैं

साबिर ज़फ़र

जी भर के तुम्हें देख लूँ तस्कीन हो कुछ तो

साबिर दत्त

ख़्वाबों से न जाओ कि अभी रात बहुत है

साबिर दत्त

हम ने ख़ाक-ए-दर-ए-महबूब जो चेहरे पे मली

सबा जायसी

अपने जलने में किसी को नहीं करते हैं शरीक

सबा अकबराबादी

आप आए हैं सो अब घर में उजाला है बहुत

सबा अकबराबादी

यगाना बन के हो जाए वो बेगाना तो क्या होगा

सबा अकबराबादी

अजल होती रहेगी इश्क़ कर के मुल्तवी कब तक

सबा अकबराबादी

कारवाँ लुट गया राहबर छुट गया रात तारीक है ग़म का यारा नहीं

सबा अफ़ग़ानी

खिल गई शम्अ तिरी सारी करामात-ए-जमाल

साइल देहलवी

ज़ोम न कीजो शम्अ-रू बज़्म के सोज़ ओ साज़ पर

साइल देहलवी

ख़िज़ाँ का जो गुलशन से पड़ जाए पाला

साइल देहलवी

आब-ए-रवाँ हूँ रास्ता क्यूँ न ढूँढ लूँ

रूही कंजाही

हवा-ए-जिंदगी भी कूचा-ए-क़ातिल से आती है

रोहित सोनी ‘ताबिश’

ज़रूर पाँव में अपने हिना वो मल के चले

रियाज़ ख़ैराबादी

उस हुस्न का शैदा हूँ उस हुस्न का दीवाना

रियाज़ ख़ैराबादी

नज़र आती है दूर की सूरत

रियाज़ ख़ैराबादी

मुझ को न दिल पसंद न दिल की ये ख़ू पसंद

रियाज़ ख़ैराबादी

मय रहे मीना रहे गर्दिश में पैमाना रहे

रियाज़ ख़ैराबादी

जो थे हाथ मेहंदी लगाने के क़ाबिल

रियाज़ ख़ैराबादी

जो हम आए तो बोतल क्यूँ अलग पीर-ए-मुग़ाँ रख दी

रियाज़ ख़ैराबादी

जिस दिन से हराम हो गई है

रियाज़ ख़ैराबादी

हम भी पिएँ तुम्हें भी पिलाएँ तमाम रात

रियाज़ ख़ैराबादी

हंस के पैमाना दिया ज़ालिम ने तरसाने के बा'द

रियाज़ ख़ैराबादी

गुल मुरक़्क़ा' हैं तिरे चाक गरेबानों के

रियाज़ ख़ैराबादी

फ़रियाद-ए-जुनूँ और है बुलबुल की फ़ुग़ाँ और

रियाज़ ख़ैराबादी

दुनिया से अलग हम ने मयख़ाने का दर देखा

रियाज़ ख़ैराबादी

दर खुला सुब्ह को पौ फटते ही मय-ख़ाने का

रियाज़ ख़ैराबादी

आईना देखते ही वो दीवाना हो गया

रियाज़ ख़ैराबादी

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