शमा Poetry (page 6)

सनम ख़ुश तबईयाँ सीखे हो तुम किन किन ज़रीफ़ों सीं

सिराज औरंगाबादी

पीव के आने का वक़्त आया है

सिराज औरंगाबादी

मुझ दर्द सें यार आश्ना नईं

सिराज औरंगाबादी

मिरा दिल आ गया झट-पट झपट में

सिराज औरंगाबादी

मज्लिस-ए-ऐश गर्म हो या-रब

सिराज औरंगाबादी

मैं न जाना था कि तू यूँ बे-वफ़ा हो जाएगा

सिराज औरंगाबादी

ख़ाक हूँ ए'तिबार की सौगंद

सिराज औरंगाबादी

कहाँ है गुल-बदन मोहन पियारा

सिराज औरंगाबादी

काफ़िर हुआ हूँ रिश्ता-ए-ज़ुन्नार की क़सम

सिराज औरंगाबादी

जान ओ दिल सीं मैं गिरफ़्तार हूँ किन का उन का

सिराज औरंगाबादी

हम हैं मुश्ताक़-ए-जवाब और तुम हो उल्फ़त सीं बईद

सिराज औरंगाबादी

हवस की आँख सीं वो चेहरा-ए-रौशन न देखोगे

सिराज औरंगाबादी

हमारी आँखों की पुतलियों में तिरा मुबारक मक़ाम हैगा

सिराज औरंगाबादी

हमारे पास जानाँ आन पहुँचा

सिराज औरंगाबादी

दो-रंगी ख़ूब नईं यक-रंग हो जा

सिराज औरंगाबादी

दिल-ए-नादाँ मिरा है बे-तक़सीर

सिराज औरंगाबादी

दिल में जब आ के इश्क़ ने तेरे महल किया

सिराज औरंगाबादी

ऐ बाग़-ए-हया दिल की गिरह खोल सुख़न बोल

सिराज औरंगाबादी

बयाबानों पे ज़िंदानों पे वीरानों पे क्या गुज़री

सिकंदर अली वज्द

इस बज़्म में पाते नहीं दिल-सोज़ किसी को

शऊर बलगिरामी

अश्क जो आँख में उबलते हैं

शुजा

रस्म-ए-गिर्या भी उठा दी हम ने

शोहरत बुख़ारी

जाने क्या बात है मानूस बहुत लगता है

शोहरत बुख़ारी

हम शहर में इक शम्अ की ख़ातिर हुए बर्बाद

शोहरत बुख़ारी

दिल तलबगार-ए-तमाशा क्यूँ था

शोहरत बुख़ारी

बुत बने राह तकोगे कब तक

शोहरत बुख़ारी

गुज़र जाएँगे ये दिन बेबसी के

शोभा कुक्कल

हंगामा है न फ़ित्ना-ए-दौराँ है आज-कल

शेरी भोपाली

वो जब तक अंजुमन में जल्वा फ़रमाने नहीं आते

शेर सिंह नाज़ देहलवी

दिल दिया है हम ने भी वो माह-ए-कामिल देख कर

शेर सिंह नाज़ देहलवी

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