शमा Poetry (page 4)

आइए जल्वा-ए-दीदार के दिखलाने को

वहीद इलाहाबादी

मावरा

वहीद अख़्तर

तुम गए साथ उजालों का भी झूटा ठहरा

वहीद अख़्तर

ख़ुश्बू है कभी गुल है कभी शम्अ कभी है

वहीद अख़्तर

हम ने देखा है मोहब्बत का सज़ा हो जाना

वहीद अख़्तर

नूर-जहाँ का मज़ार

तिलोकचंद महरूम

क्या बताऊँ कि है किस ज़ुल्फ़ का सौदा मुझ को

तौसीफ़ तबस्सुम

सदाक़त सादगी ओढ़े बुलंदी थाम लेती है

ताैफ़ीक़ साग़र

रहने वालों को तिरे कूचे के ये क्या हो गया

मीर तस्कीन देहलवी

इक न इक शम् अँधेरे में जलाए रखिए

तारिक़ बदायुनी

दिल के भूले हुए अफ़्साने बहुत याद आए

तनवीर अहमद अल्वी

दर्द की लय को बढ़ा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी

तनवीर अहमद अल्वी

सारी दुनिया के सितम और मिरा दिल तन्हा

तमन्ना जमाली

तुम्हारी याद बढ़ी और दिल हुआ रौशन

ताजदार आदिल

जो मिल गया है यहाँ जल्वा-ए-ख़याली है

ताजदार आदिल

सारबान

ताबिश कमाल

ये शहर आफ़तों से तो ख़ाली कोई न था

ताबिश कमाल

पाबंदी-ए-हुदूद से बेगाना चाहिए

ताबिश देहलवी

हर इक दाग़-ए-दिल शम्अ' साँ देखता हूँ

ताबिश देहलवी

देखिए अहल-ए-मोहब्बत हमें क्या देते हैं

ताबिश देहलवी

वो नाज़ुक सा तबस्सुम रह गया वहम-ए-हसीं बन कर

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

हम एक उम्र जले शम-ए-रहगुज़र की तरह

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

हम एक उम्र जले शम-ए-रहगुज़र की तरह

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

महफ़िल के बीच सुन के मिरे सोज़-ए-दिल का हाल

ताबाँ अब्दुल हई

जिस का गोरा रंग हो वो रात को खिलता है ख़ूब

ताबाँ अब्दुल हई

तू मिल उस से हो जिस से दिल तिरा ख़ुश

ताबाँ अब्दुल हई

किसी का काम दिल इस चर्ख़ से हुआ भी है

ताबाँ अब्दुल हई

है आरज़ू ये जी में उस की गली में जावें

ताबाँ अब्दुल हई

देख उस को ख़्वाब में जब आँख खुल जाती है सुब्ह

ताबाँ अब्दुल हई

दाग़-ए-दिल अपना जब दिखाता हूँ

ताबाँ अब्दुल हई

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