शौक Poetry (page 3)

निगाह-ए-शौक़ को रुख़ पर निसार होने दो

ज़हीर अहमद ताज

नज़र को वुसअतें दे बिजलियों से आश्ना कर दे

ज़हीर अहमद ताज

मुझ पर सुरूर छा गया बादा-ए-दिल-नवाज़ से

ज़हीर अहमद ताज

किसी की याद-ए-रंगीं में है ये दिल बे-क़रार अब तक

ज़हीर अहमद ताज

ऐ मिरी जान-ए-आरज़ू माने-ए-इल्तिफ़ात क्या

ज़हीर अहमद ताज

मौत

ज़ाहिदा ज़ैदी

हिकायत-ए-गुरेज़ाँ

ज़ाहिदा ज़ैदी

दिल-ए-फ़सुर्दा को अब ताक़त-ए-क़रार नहीं

ज़ाहिदा ज़ैदी

बू-ए-गुल रक़्स में है बाद-ए-ख़िज़ाँ रक़्स में है

ज़ाहिदा ज़ैदी

बिसात-ए-शौक़ के मंज़र बदलते रहते हैं

ज़ाहिद फ़ारानी

ज़ुल्फ़-ए-ख़मदार में नूर-ए-रुख़-ए-ज़ेबा देखो

ज़ाहिद चौधरी

वो बहर-ओ-बर में नहीं और न आसमाँ में है

ज़ाहिद चौधरी

वो आफ़्ताब में है और न माहताब में है

ज़ाहिद चौधरी

नहीं ये रस्म-ए-मोहब्बत कि इश्तिबाह करो

ज़ाहिद चौधरी

मेरा वजूद उस को गवारा नहीं रहा

ज़ाहिद चौधरी

जब आशिक़ी में मेरा कोई राज़-दाँ नहीं

ज़ाहिद चौधरी

गो मुब्तला-ए-गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर हूँ मैं

ज़ाहिद चौधरी

चला हूँ घर से मैं अहवाल-ए-दिल सुनाने को

ज़ाहिद चौधरी

चल दिया वो उस तरह मुझ को परेशाँ छोड़ कर

ज़ाहिद चौधरी

मकीन ही अजीब हैं

ज़हीर सिद्दीक़ी

ज़र्द चेहरे को बड़े शौक़ से सब देखते हैं

ज़हीर रहमती

बरगुज़ीदा हैं हवाओं के असर से हम भी

ज़हीर रहमती

तमाम उम्र तिरी हम-रही का शौक़ रहा

ज़हीर काश्मीरी

मिरा ही बन के वो बुत मुझ से आश्ना न हुआ

ज़हीर काश्मीरी

कोई पूछे तो सही हम से हमारी रूदाद

ज़हीर देहलवी

वाँ तबीअत दम-ए-तक़रीर बिगड़ जाती है

ज़हीर देहलवी

फटा पड़ता है जोबन और जोश-ए-नौ-जवानी है

ज़हीर देहलवी

हरीफ़-ए-राज़ हैं ऐ बे-ख़बर दर-ओ-दीवार

ज़हीर देहलवी

गुल-अफ़्शानी के दम भरती है चश्म-ए-ख़ूँ-फ़िशाँ क्या क्या

ज़हीर देहलवी

दिल गया दिल का निशाँ बाक़ी रहा

ज़हीर देहलवी

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