शौक Poetry (page 5)

रौशन तमाम काबा ओ बुत-ख़ाना हो गया

यगाना चंगेज़ी

ख़ुदा की मार वो अय्याम-ए-शोर-ओ-शर गुज़रे

यगाना चंगेज़ी

दामन-ए-क़ातिल जो उड़ उड़ कर हवा देने लगे

यगाना चंगेज़ी

अदब ने दिल के तक़ाज़े उठाए हैं क्या क्या

यगाना चंगेज़ी

अश्क-उफ़्तादा नज़र आते हैं सारे दरिया

वज़ीर अली सबा लखनवी

ऐ भँवर तेरी तरह बेबाक हो जाएँगे हम

वसीम मलिक

मेरे होंटों का अभी ज़हर तिरे जिस्म में है

वक़ार ख़ान

कहीं साक़ी का फ़ैज़-ए-आम भी है

वामिक़ जौनपुरी

हो रही है दर-ब-दर ऐसी जबीं-साई कि बस

वामिक़ जौनपुरी

बर्क़ सर-ए-शाख़-सार देखिए कब तक रहे

वामिक़ जौनपुरी

मैं जीते-जी तलक रहूँ मरहून आप का

वलीउल्लाह मुहिब

नंग नहीं मुझ को तड़पने से सँभल जाने का

वली उज़लत

दिल तलबगार-ए-नाज़-ए-मह-वश है

वली मोहम्मद वली

आशिक़ के मुख पे नैन के पानी को देख तूँ

वली मोहम्मद वली

मिरे तो दिल में वही शौक़ है जो पहले था

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

बढ़ा हंगामा-ए-शौक़ इस क़दर बज़्म-ए-हरीफ़ाँ में

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

ज़ब्त की कोशिश है जान-ए-ना-तवाँ मुश्किल में है

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

यही है इश्क़ की मुश्किल तो मुश्किल आसाँ है

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

तिरे आशुफ़्ता से क्या हाल-ए-बेताबी बयाँ होगा

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

सुरूर-अफ़्ज़ा हुई आख़िर शराब आहिस्ता आहिस्ता

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

शौक़ ने इशरत का सामाँ कर दिया

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

शौक़ देता है मुझे पैग़ाम-ए-इश्क़

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

पोशीदा देखती है किसी की नज़र मुझे

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

मैं ने माना काम है नाला दिल-ए-नाशाद का

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

जो तुझ से शोर-ए-तबस्सुम ज़रा कमी होगी

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

ऐ अहल-ए-वफ़ा ख़ाक बने काम तुम्हारा

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

आप अपना रू-ए-ज़ेबा देखिए

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

गरेबाँ से तिरे किस ने निकाला सुब्ह-ए-ख़ंदाँ को

वहीदुद्दीन सलीम

गरेबाँ से तिरे किस ने निकाला सुब्ह-ए-ख़ंदाँ को

वहीदुद्दीन सलीम

शिद्दत-ए-शौक़ असर-ख़ेज़ है जादू की तरह

वाहिद प्रेमी

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