शौक Poetry (page 6)

ग़म भी है कैफ़ भी है सोज़ भी है साज़ भी है

वाहिद प्रेमी

अपना नफ़स नफ़स है कि शो'ला कहें जिसे

वाहिद प्रेमी

आज फिर सर-ए-मक़्तल दे के ख़ुद लहू हम ने

वाहिद प्रेमी

फ़रेब-ए-राह-ए-मोहब्बत का आसरा भी नहीं

वहीदुल हसन हाश्मी

रहे वो ज़िक्र जो लब-हा-ए-आतिशीं से चले

वहीद अख़्तर

ख़ुश्बू है कभी गुल है कभी शम्अ कभी है

वहीद अख़्तर

कतरा के गुल्सिताँ से जो सू-ए-क़फ़स चले

वहीद अख़्तर

अब हम चराग़ बन के सर-ए-राह जल उठे

विश्वनाथ दर्द

इस ख़राबी की कोई हद है कि मेरे घर से

विपुल कुमार

रही है यूँ ही नदामत मुझे मुक़द्दर से

विजय शर्मा अर्श

आशिक़ हुए तो इश्क़ में होश्यार क्यूँ न थे

वारिस किरमानी

दिल प्यार के रिश्तों से मुकर भी नहीं जाता

वली मदनी

ज़मीं से आसमाँ तक आसमाँ से ला-मकाँ तक है

वहशी कानपुरी

वो ध्यान की राहों में जहाँ हम को मिलेगा

उर्फ़ी आफ़ाक़ी

हिजाब उट्ठे हैं लेकिन वो रू-ब-रू तो नहीं

उम्मीद फ़ाज़ली

न रही बे-ख़ुदी-ए-शौक़ में इतनी भी ख़बर

तिलोकचंद महरूम

शहीद भगत-सिंह

तिलोकचंद महरूम

ताइर-ए-दिल के लिए ज़ुल्फ़ का जाल अच्छा है

तिलोकचंद महरूम

हैरत-ज़दा मैं उन के मुक़ाबिल में रह गया

तिलोकचंद महरूम

परी उड़ जाएगी और राजधानी ख़त्म होगी

तौक़ीर तक़ी

पलकों को तेरी शर्म से झुकता हुआ मैं देखूँ

तौक़ीर अहमद

पर्वाज़ का था शौक़ मुझे आसमान तक

ताैफ़ीक़ साग़र

राज़ का बज़्म में चर्चा कभी होने न दिया

तसनीम आबिदी

क्या क्या मज़े से रात की अहद-ए-शबाब में

मीर तस्कीन देहलवी

गर मेरे बैठने से वो आज़ार खींचते

मीर तस्कीन देहलवी

दिल किस की तेग़-ए-नाज़ से लज़्ज़त-चशीदा है

मीर तस्कीन देहलवी

नमी आँखों की बादा हो गई है

तारिक़ राशीद दरवेश

हवा रुकी है तो रक़्स-ए-शरर भी ख़त्म हुआ

तारिक़ क़मर

मुझे अज़ीज़ है बे-एहतियाती-ए-सादा

तनवीर अंजुम

तरीक़ कोई न आया मुझे ज़माने का

तनवीर अंजुम

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