शौक Poetry (page 7)

कभी बहुत है कभी ध्यान तेरा कुछ कम है

तनवीर अंजुम

जचती नहीं कुछ शाही-ओ-इम्लाक नज़र में

तनवीर अंजुम

इज़्हार-ए-जुनूँ बर-सर-ए-बाज़ार हुआ है

तनवीर अंजुम

वो रक़्स कहाँ और वो तब-ओ-ताब कहाँ है

तनवीर अहमद अल्वी

यूँ भी तिरा एहसान है आने के लिए आ

तालिब बाग़पती

न पहुँचा साथ यारान-ए-सफ़र की ना-तवानी से

तालिब अली खान ऐशी

दर्द-ए-दिल को दास्ताँ-दर-दास्ताँ होने तो दो

तल्हा रिज़वी बारक़

उसे कहाँ हमें क़ैदी बना के रखना था

तालीफ़ हैदर

नज़ारगी-ए-शौक़ ने दीदार में खींचा

तालीफ़ हैदर

न बे-कली का हुनर है न जाँ-फ़ज़ाई का

तालीफ़ हैदर

हर रस्म पर नज़र को झुकाते हुए चले

तलअत इशारत

ऐ आरज़ू-ए-शौक़ तुझे कुछ ख़बर है आज

ताजवर नजीबाबादी

ख़्वाहिशों की बादशाही कुछ नहीं

ताहिर अज़ीम

शर्मिंदा हम जुनूँ से हैं एक एक तार के

ताबिश देहलवी

सब ग़म कहें जिसे कि तमन्ना कहें जिसे

ताबिश देहलवी

मह-ओ-पर्वीं तह-ए-कमंद रहे

ताबिश देहलवी

बहुत जबीन-ओ-रुख़-ओ-लब बहुत क़द-ओ-गेसू

ताबिश देहलवी

अज़ाब टूटे दिलों को हर इक नफ़स गुज़रा

ताबिश देहलवी

आग़ाज़-ए-गुल है शौक़ मगर तेज़ अभी से है

ताबिश देहलवी

लब-ए-निगार को ज़हमत न दो ख़ुदा के लिए

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

ये हुजुम-ए-रस्म-ओ-रह दुनिया की पाबंदी भी है

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

वो नाज़ुक सा तबस्सुम रह गया वहम-ए-हसीं बन कर

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

शौक़ के ख़्वाब-ए-परेशाँ की हैं तफ़्सीरें बहुत

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

शौक़ का तक़ाज़ा है शरह-ए-आरज़ू कीजे

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

शरह-ए-जाँ-सोज़-ए-ग़म-ए-अर्ज़-ए-वफ़ा क्या करते

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

क़ुसूर इश्क़ में ज़ाहिर है सब हमारा था

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

नुमू के फ़ैज़ से रंग-ए-चमन निखर सा गया

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

लाई तिरी महफ़िल में मुझे आरज़ू-ए-दीद

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

किसी के हाथ में जाम-ए-शराब आया है

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

कमाल-ए-बे-ख़बरी को ख़बर समझते हैं

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

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