शौक Poetry (page 9)

फ़क़त क़याम का मतलब गुज़र-बसर कोई है

सय्यद काशिफ़ रज़ा

ज़रा न हम पे किया ए'तिबार गुज़री है

सय्यद हामिद

शिकवे ज़बाँ पे आ सकें इस का सवाल ही न हो

सय्यद हामिद

बात वो बात नहीं है जो ज़बाँ तक पहुँचे

सय्यद हामिद

आँखों को चमक चेहरे को इक आब तो दीजे

सय्यद फ़ज़लुल मतीन

नशा नशा सा हवाएँ रचाए फिरती हैं

सय्यद अारिफ़

न जाने रौज़न-ए-दीवार क्या जादू जगाता है

सय्यद अमीन अशरफ़

नहीं दो क़ुब्बा-ए-पिस्तान शोख़-ओ-शंग सीने पर

सय्यद अाग़ा अली महर

ये क्या तिलिस्म है दुनिया पे बार गुज़री है

सय्यद आबिद अली आबिद

ये अर्ज़-ए-शौक़ है आराइश-ए-बयाँ भी तो हो

सय्यद आबिद अली आबिद

ग़म-ए-दौराँ ग़म-ए-जानाँ का निशाँ है कि जो था

सय्यद आबिद अली आबिद

सती

सुरूर जहानाबादी

बुलबुल ओ परवाना

सुरूर जहानाबादी

सोज़-ए-ग़म भी नहीं फ़ुग़ाँ भी नहीं

सुरूर बाराबंकवी

कहे तो कौन कहे सरगुज़श्त-ए-आख़िर-ए-शब

सुरूर बाराबंकवी

आईना देखना

सूरज नारायण मेहर

निगाहों ने कई सपने बुने हैं

सुनील कुमार जश्न

सरसब्ज़ मौसमों का असर ले गया कोई

सुल्तान अख़्तर

साअत-ए-मर्ग-ए-मुसलसल हर नफ़स भारी हुई

सुल्तान अख़्तर

रक़्स-ए-ताऊस-ए-तमन्ना नहीं होने वाला

सुल्तान अख़्तर

हम मुतमइन हैं उस की रज़ा के बग़ैर भी

सुल्तान अख़्तर

कुछ नहीं है तो ये अंदेशा ये डर कैसा है

सुलेमान ख़ुमार

कोई दिया किसी चौखट पे अब न जलने का

सुलेमान ख़ुमार

ज़ौक़ पे शौक़ पे मिट जाने को तय्यार उठा

सुलैमान अहमद मानी

नंग-ए-एहसास है अंदोह-ए-ग़रीब-उल-वतनी

सुलैमान आसिफ़

न इब्तिदा-ए-जुनूँ है न इंतिहा-ए-जुनूँ

सुहैल काकोरवी

हँस दिए ज़ख़्म-ए-जिगर जैसे कि गुल-हा-ए-बहार

सुहैल काकोरवी

ज़रूरी कब है कि हर काम इख़्तियारी करें

सुहैल अख़्तर

कि ख़ुद-नुमाई न तश्हीर चाहते हैं हम

सुहैल अख़्तर

जो कुछ हुआ सो हुआ अब सवाल ही क्या है

सुहा मुजद्ददी

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