गिनती Poetry (page 5)

दरिया को अपने पाँव की कश्ती से पार कर

रशीद निसार

देता है मुझ को चर्ख़-ए-कुहन बार बार दाग़

रंजूर अज़ीमाबादी

कैसे निकलूँ ख़ुमार से बाहर

रख़्शंदा नवेद

ग़मी ख़ुशी बाँटी थी अपने बिस्तर से

रख़्शंदा नवेद

रही न यारो आख़िर सकत हवाओं में

राजेन्द्र मनचंदा बानी

ग़म को दिल का क़रार कर लिया जाए

राजेश रेड्डी

नख़्ल-ए-उमीद-ओ-आरज़ू बे-बर्ग-ओ-बार है

राज कुमार सूरी नदीम

गर्द में अट रहे हैं एहसासात

रईस अमरोहवी

उड़ाते आए हैं आप अपने ख़्वाब-ज़ार की ख़ाक

रहमान हफ़ीज़

मैं कई बरसों से तेरी जुस्तुजू करती रही

इरम ज़ेहरा

मिरी ख़ाक उस ने बिखेर दी सर-ए-रह ग़ुबार बना दिया

इक़बाल कौसर

मिरी ख़ाक उस ने बिखेर दी सर-ए-रह ग़ुबार बना दिया

इक़बाल कौसर

सुना है उस ने ख़िज़ाँ को बहार करना है

इक़बाल कैफ़ी

काम आ गई है गर्दिश-ए-दौराँ कभी कभी

इक़बाल आबिदी

यूँ वफ़ा के सारे निभाओ ग़म कि फ़रेब में भी यक़ीन हो

इन्दिरा वर्मा

अभी से कैसे कहूँ तुम को बेवफ़ा साहब

इन्दिरा वर्मा

तलाश मैं ने ज़िंदगी में तेरी बे-शुमार की

इमरान हुसैन आज़ाद

सीना-कूबी कर चुके ग़म कर चुके

इमदाद अली बहर

सीना-कूबी कर चुके ग़म कर चुके

इमदाद अली बहर

गया सब अंदोह अपने दिल का थमे अब आँसू क़रार आया

इमदाद अली बहर

ऐ ख़ुदा भरम रखना बरक़रार इस घर का

इकराम मुजीब

क्या जाने किस की धुन में रहा दिल-फ़िगार चाँद

इकराम जनजुआ

ग़म-ए-जहाँ को शर्मसार करने वाले क्या हुए

इफ़्तिख़ार आरिफ़

नज़र जो आया उस पे ए'तिबार कर लिया गया

इफ़्फ़त अब्बास

मोहब्बतों में जो मिट मिट के शाहकार हुआ

इब्राहीम अश्क

दिल वही अश्क-बार रहता है

इब्न-ए-मुफ़्ती

चाँद के तमन्नाई

इब्न-ए-इंशा

अर्श के तारे तोड़ के लाएँ काविश लोग हज़ार करें

इब्न-ए-इंशा

कोई भी शख़्स जो वहम-ओ-गुमाँ की ज़द में रहा

हीरानंद सोज़

दुआ ही वज्ह-ए-करामात थोड़ी होती है

हिजाब अब्बासी

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