गिनती Poetry (page 9)

जो ज़रूरी है कार कर पहले

अशोक साहनी

ग़म तो था फिर भी बे-शुमार न था

अशफ़ाक़ रहबर

जो इस ज़मीर फ़रोशी के माहेरीन में है

असग़र मेहदी होश

देखें महशर में उन से क्या ठहरे

आरज़ू लखनवी

सैर करते उसे देखा है जो बाज़ारों में

अरशद अली ख़ान क़लक़

इश्क़ में तेरे जान-ए-ज़ार हैफ़ है मुफ़्त में चली

अरशद अली ख़ान क़लक़

ज़िंदगी की ज़रूरतों का यहाँ

अनवर शऊर

जो हम-कलाम हो हम से उसी के होते हैं

अनवर शऊर

अपने लिए एक नौहा

अनवर सेन रॉय

बे-मसरफ़ रिश्तों की फ़राग़त

अंजुम सलीमी

सहर को खोज चराग़ों पे इंहिसार न कर

अंजुम सलीमी

मिरे जुनूँ को हवस में शुमार कर लेगा

अंजुम ख़लीक़

जिन को कहा न जा सका जिन को सुना नहीं गया

अंजुम ख़लीक़

मिरे जुनूँ को हवस में शुमार कर लेगा

अंजुम ख़लीक़

चाहे तू शौक़ से मुझे वहशत-ए-दिल शिकार कर

अंजुम ख़लीक़

हर एक पल मुझे दुख दर्द बे-शुमार मिले

अनीस अब्र

ज़रा सी बात

अमजद इस्लाम अमजद

पर्दे में लाख फिर भी नुमूदार कौन है

अमजद इस्लाम अमजद

ज़िंदगी बे-क़रार कौन करे

अमित अहद

यूँ मिरे होने को मुझ पर आश्कार उस ने किया

अमीर इमाम

मिट्टी का दिया

अल्ताफ़ हुसैन हाली

मार्च 1907

अल्लामा इक़बाल

नाला है बुलबुल-ए-शोरीदा तिरा ख़ाम अभी

अल्लामा इक़बाल

अब भी रौशन हैं

अली सरदार जाफ़री

ये बेकस-ओ-बेक़रार चेहरे

अली सरदार जाफ़री

गिनती में बे-शुमार थे कम कर दिए गए

आलमताब तिश्ना

जमा हुआ है फ़लक पे कितना ग़ुबार मेरा

आलम ख़ुर्शीद

बे-तकल्लुफ़ बोसा-ए-ज़ुल्फ़-ए-चलीपा लीजिए

अकबर इलाहाबादी

सिखा सकी न जो आदाब-ए-मय वो ख़ू क्या थी

अकबर अली खान अर्शी जादह

मैं दिल-ज़दा हूँ अगर दिल-फ़िगार वो भी हैं

अहमद राही

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