जिन को कहा न जा सका जिन को सुना नहीं गया
वो भी हैं कुछ हिकायतें उन को भी तू शुमार कर
Faiz Ahmad Faiz
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चाँद हम दोनों से मुशाबह है
कितना ढूँडा उसे जब एक ग़ज़ल और कही
नख़्ल-ए-अना में ज़ोर-ए-नुमू किस ग़ज़ब का था
बदल चुके हैं सब अगली रिवायतों के निसाब
ख़ुश-आमदीद
दस्तार-ए-हुनर बख़्शिश-ए-दरबार नहीं है
कार-ए-हुनर सँवारने वालों में आएगा
ए'तिराफ़
सदाक़तों को ये ज़िद है ज़बाँ तलाश करूँ
बीते हुए लम्हात को पहचान में रखना
ये कैसी बात मिरा मेहरबान भूल गया