मामला Poetry (page 34)

इतनी ख़राब सूरत-ए-हालात भी नहीं

फ़ारूक़ नाज़की

अपनी ग़ज़ल को ख़ून का सैलाब ले गया

फ़ारूक़ नाज़की

दिल-ए-ईज़ा-तलब ले तेरा कहना कर लिया मैं ने

फ़ारूक़ बाँसपारी

शिकायत

फ़ारूक़ बख़्शी

कभी आओ

फ़ारूक़ बख़्शी

तुम्हें पाने की हैसिय्यत नहीं है

फरीहा नक़वी

मैं कि अब तेरी ही दीवार का इक साया हूँ

फ़ारिग़ बुख़ारी

हवास लूट लिए शोरिश-ए-तमन्ना ने

फ़ारिग़ बुख़ारी

दिल के घाव जब आँखों में आते हैं

फ़ारिग़ बुख़ारी

औरत हूँ मगर सूरत-ए-कोहसार खड़ी हूँ

फ़रहत ज़ाहिद

औरत हूँ मगर सूरत-ए-कोहसार खड़ी हूँ

फ़रहत ज़ाहिद

आग़ाज़ की तारीख़

फ़रहत एहसास

ये सारे ख़ूबसूरत जिस्म अभी मर जाने वाले हैं

फ़रहत एहसास

साहिब-ए-इश्क़ अब इतनी सी तो राहत मुझे दे

फ़रहत एहसास

मुसलसल अश्क-बारी हो रही है

फ़रहत एहसास

मोहब्बत का सिला-कार-ए-मोहब्बत से नहीं मिलता

फ़रहत एहसास

मेरी मिट्टी का नसब बे-सर-ओ-सामानी से

फ़रहत एहसास

मैं तमाम गर्द-ओ-ग़ुबार हूँ मुझे मेरी सूरत-ए-हाल दे

फ़रहत एहसास

कुर्सी-ए-दिल पे तिरे जाते ही दर्द आ बैठे

फ़रहत एहसास

ख़ुद से इंकार को हम-ज़ाद किया है मैं ने

फ़रहत एहसास

ख़त बहुत उस के पढ़े हैं कभी देखा नहीं है

फ़रहत एहसास

काम उन आँखों की हवसनाकी की साज़िश आ गई

फ़रहत एहसास

है शोर साहिलों पर सैलाब आ रहा है

फ़रहत एहसास

एक ग़ज़ल कहते हैं इक कैफ़िय्यत तारी कर लेते हैं

फ़रहत एहसास

देखते ही देखते खोने से पहले देखते

फ़रहत एहसास

ब-रंग-ए-सब्ज़ा उन्ही साहिलों पे जम जाएँ

फ़रहत एहसास

ज़रा सी रात ढल जाए तो शायद नींद आ जाए

फ़रह इक़बाल

कोई जब मिल के मुस्कुराया था

फ़रह इक़बाल

वा-ए-नादानी ये हसरत थी कि होता दर खुला

फ़ानी बदायुनी

मर कर मरीज़-ए-ग़म की वो हालत नहीं रही

फ़ानी बदायुनी

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