मामला Poetry (page 53)

फ़ना के दश्त में कब का उतर गया था मैं

अहमद ख़याल

तन्हाई से बचाव की सूरत नहीं करूँ

अहमद कमाल परवाज़ी

ये लग रहा है रग-ए-जाँ पे ला के छोड़ी है

अहमद कमाल परवाज़ी

तन्हाई से बचाव की सूरत नहीं करूँ

अहमद कमाल परवाज़ी

एक खेल

अहमद जावेद

दिल-ए-बेताब के हमराह सफ़र में रहना

अहमद जावेद

वो पारा हूँ मैं जो आग में हूँ वो बर्क़ हूँ जो सहाब में हूँ

अहमद हुसैन माइल

कोई हसीन है मुख़्तार-ए-कार-ख़ाना-ए-इश्क़

अहमद हुसैन माइल

हो गए मुज़्तर देखते ही वो हिलती ज़ुल्फ़ें फिरती नज़र हम

अहमद हुसैन माइल

याद क्या क्या लोग दश्त-ए-बे-कराँ में आए थे

अहमद हमदानी

'फ़राज़' तेरे जुनूँ का ख़याल है वर्ना

अहमद फ़राज़

सरहदें

अहमद फ़राज़

अभी हम ख़ूबसूरत हैं

अहमद फ़राज़

तरस रहा हूँ मगर तू नज़र न आ मुझ को

अहमद फ़राज़

न सह सका जब मसाफ़तों के अज़ाब सारे

अहमद फ़राज़

कशीदा सर से तवक़्क़ो अबस झुकाव की थी

अहमद फ़राज़

जब तिरी याद के जुगनू चमके

अहमद फ़राज़

हर एक बात न क्यूँ ज़हर सी हमारी लगे

अहमद फ़राज़

हर आश्ना में कहाँ ख़ू-ए-मेहरमाना वो

अहमद फ़राज़

दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभाने वाला

अहमद फ़राज़

वक़्त के हर इक नक़्श का मअ'नी इतना बदला बदला होगा

अहमद फ़क़ीह

वो ज़माना है कि अब कुछ नहीं दीवाने में

अहमद अता

बेबसी ऐसी भी होती है भला

अहमद अता

अब किसी ख़्वाब की ताबीर नहीं चाहता मैं

अहमद अशफ़ाक़

अब किसी ख़्वाब की ताबीर नहीं चाहता मैं

अहमद अशफ़ाक़

अम्न-ओ-सुल्ह-ओ-आश्ती हो जैसे बीमारी का नाम

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

अगर कुछ ए'तिबार-ए-जिस्म-ओ-जाँ हो

आग़ाज़ बरनी

ये कैसे बाल खोले आए क्यूँ सूरत बनी ग़म की

आग़ा शायर

रोने से जो भड़ास थी दिल की निकल गई

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

तीर-ए-नज़र से छिद के दिल-अफ़गार ही रहा

आग़ा हज्जू शरफ़

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