आला Poetry (page 5)

शोर-ए-बरबत-ओ-नय

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

कोई आशिक़ किसी महबूबा से!

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ज़मीं ख़्वाब ख़ुश्बू

फ़हीम शनास काज़मी

थम गई वक़्त की रफ़्तार तिरे कूचे में

एजाज़ गुल

इतना तिलिस्म याद के चक़माक़ में रहा

एजाज़ गुल

दर खोल के देखूँ ज़रा इदराक से बाहर

एजाज़ गुल

वही सितारा-नुमा इक चराग़ है 'आज़र'

दिलावर अली आज़र

मैं सुर्ख़ फूल को छू कर पलटने वाला था

दिलावर अली आज़र

बना रहा था कोई आब ओ ख़ाक से कुछ और

दिलावर अली आज़र

'आज़र' रहा है तेशा मिरे ख़ानदान में

दिलावर अली आज़र

दर्द औरों का दिल में गर रखिए

दरवेश भारती

न मेहराब-ए-हरम समझे न जाने ताक़-ए-बुत-ख़ाना

बेदम शाह वारसी

रौनक़ फ़रोग़-ए-दर्द से कुछ अंजुमन में है

बेबाक भोजपुरी

खुला है जल्वा-ए-पिन्हाँ से अज़-बस चाक वहशत का

बयान मेरठी

कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बँधा हुआ

बशीर बद्र

लब-ए-रंगीं से अगर तू गुहर-अफ़शाँ होता

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

तुफ़्ता-जानों का इलाज ऐ अहल-ए-दानिश और है

ज़फ़र

ख़याल-ओ-ख़्वाब का सारा धुआँ उतर चुका है

अज़ीज़ नबील

फ़साना-दर-फ़साना फिर रही है ज़िंदगी जब से

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

बुझा के रख गया है कौन मुझ को ताक़-ए-निस्याँ पर

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

पड़ा है ज़िंदगी के इस सफ़र से साबिक़ा अपना

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

निकलना ख़ुद से मुमकिन है न मुमकिन वापसी मेरी

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

न याद आया न भूला न सानेहा मुझ को

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

उस निगाह-ए-नाज़ ने यूँ रात-भर तज्सीम की

औरंगज़ेब

मिरे सुपुर्द कहाँ वो ख़ज़ाना करता था

अतीक़ुल्लाह

चराग़ हाथों के बुझ रहे हैं सितारा हर रह-गुज़र में रख दे

अतीक़ुल्लाह

नज़्र-ए-अलीगढ़

असरार-उल-हक़ मजाज़

एक दोस्त की ख़ुश-मज़ाक़ी पर

असरार-उल-हक़ मजाज़

किया गर्दिशों के हवाले उसे चाक पर रख दिया

असलम महमूद

रफ़ीक़ दोस्त मुहिब मुझ को शाक़ सब ही थे

असलम हनीफ़

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