तबा Poetry (page 3)

है आरमीदगी में निकोहिश बजा मुझे

ग़ालिब

ये फ़र्क़ जीते ही जी तक गदा-ओ-शाह में है

जोर्ज पेश शोर

वो मौज-ए-ख़ुनुक शहर-ए-शरर तक नहीं आई

फ़ुज़ैल जाफ़री

अब दौर-ए-आसमाँ है न दौर-ए-हयात है

फ़िराक़ गोरखपुरी

झगड़े ख़ुदा से हो गए अहद-ए-शबाब में

फ़रहत एहसास

जब वो मह-ए-रुख़्सार यकायक नज़र आया

दाऊद औरंगाबादी

इक ख़्वाब का ख़याल है दुनिया कहें जिसे

दत्तात्रिया कैफ़ी

फ़ना का होश आना ज़िंदगी का दर्द-ए-सर जाना

चकबस्त ब्रिज नारायण

अब किसी बात का तालिब दिल-ए-नाशाद नहीं

बेख़ुद देहलवी

जैसे भी ये दुनिया है जो कुछ भी ज़माना है

बासित भोपाली

दिल में हर-चंद आरज़ू थी बहुत

बासिर सुल्तान काज़मी

ज़ख़्म खा के ख़ंदाँ हैं पैरहन-दरीदा हम

बशीर मुंज़िर

याँ ख़ाक का बिस्तर है गले में कफ़नी है

ज़फ़र

इतना न अपने जामे से बाहर निकल के चल

ज़फ़र

हमीं ने ज़ीस्त के हर रूप को सँवारा है

अज़ीज़ तमन्नाई

उसी ने साथ दिया ज़िंदगी की राहों में

अज़ीज़ तमन्नाई

'मीर'

अज़ीज़ लखनवी

ये ग़लत है ऐ दिल-ए-बद-गुमाँ कि वहाँ किसी का गुज़र नहीं

अज़ीज़ लखनवी

नाले दम लेते नहीं या-रब फ़ुग़ाँ रुकती नहीं

अज़ीज़ हैदराबादी

ज़हराब-ए-हुस्न

असरार-उल-हक़ मजाज़

न हम-आहंग-ए-मसीहा न हरीफ़-ए-जिब्रील

असरार-उल-हक़ मजाज़

ख़ामोशी तक तो एक सदा ले गई मुझे

अरशद अब्दुल हमीद

ये ख़ुद को देखते रहने की है जो ख़ू मुझ में

अनवर शऊर

कट चुकी थी ये नज़र सब से बहुत दिन पहले

अनवर शऊर

जाए ख़िरद नहीं है कि फ़रज़ाना चाहिए

अंजुम रूमानी

साफ़ कहते हो मगर कुछ नहीं खुलता कहना

अमीर मीनाई

दिल को दर्द-आश्ना किया तू ने

अल्ताफ़ हुसैन हाली

तू है किस मंज़िल में तेरा बोल खाँ है दिल का ठार

अलीमुल्लाह

दिलबर को दिलबरी सूँ मना यार कर रखूँ

अलीमुल्लाह

डाल दे जान मआ'नी में वो उर्दू ये है

अकबर इलाहाबादी

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