देरी Poetry (page 2)

समझते हैं जो अपने बाप की जागीर मिट्टी को

ग़ुलाम हुसैन साजिद

हुई ताख़ीर तो कुछ बाइस-ए-ताख़ीर भी था

ग़ालिब

ऐ गर्दिशो तुम्हें ज़रा ताख़ीर हो गई

गणेश बिहारी तर्ज़

माहौल साज़गार करो मैं नशे में हूँ

गणेश बिहारी तर्ज़

'फ़िराक़' इक नई सूरत निकल तो सकती है

फ़िराक़ गोरखपुरी

मिलना है अगर ख़ुद से तो फिर देर न करना

फ़रहत नदीम हुमायूँ

हाल में जीने की तदबीर भी हो सकती है

फ़रहत नदीम हुमायूँ

ऐ कातिब-ए-तक़दीर ये तक़दीर में लिख दे

फ़रहत नदीम हुमायूँ

या-रब तिरी रहमत से मायूस नहीं 'फ़ानी'

फ़ानी बदायुनी

फिर मुझे लिखना जो वस्फ़-ए-रू-ए-जानाँ हो गया

भारतेंदु हरिश्चंद्र

हज़ार कहता रहा मैं कि यार एक मिनट

बासिर सुल्तान काज़मी

अब आँख भी मश्शाक़ हुई ज़ेर-ओ-ज़बर की

अज़रा परवीन

उस आँख से वहशत की तासीर उठा लाया

अज़्म बहज़ाद

दूसरा रुख़ नहीं जिस का उसी तस्वीर का है

अज़लान शाह

इज़ाला हो गया ताख़ीर से निकलने का

अज़हर फ़राग़

तक़दीर पे शाकिर रह कर भी ये कौन कहे तदबीर न कर

आरज़ू लखनवी

हुज़ूर-ए-ग़ैर तुम उश्शाक़ की तहक़ीर करते हो

अरशद अली ख़ान क़लक़

है भी और फिर नज़र नहीं आती

अनवर देहलवी

अब अपना हाल हम उन्हें तहरीर कर चुके

अनवर देहलवी

माज़रत रौंदे हुए फूलों से कर लूँ तो चलूँ

अंजुम सलीमी

सब को अपने ज़ेहन से झटका ख़ुद को याद किया

अंजुम सलीमी

जब से ज़िंदगी हुआ दिल गर्दिश-ए-तक़दीर का

अंबरीन हसीब अंबर

जज़्बा-ए-दिल ने मिरे तासीर दिखलाई तो है

अकबर इलाहाबादी

कोई अन-देखी फ़ज़ा तस्वीर करना चाहिए

अहमद ख़याल

क्या हुए लोग पुराने जिन्हें देखा भी नहीं

अहमद अता

वो ज़माना है कि अब कुछ नहीं दीवाने में

अहमद अता

अब किसी ख़्वाब की ताबीर नहीं चाहता मैं

अहमद अशफ़ाक़

फ़ैसला

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

इक फ़ना के घाट उतरा एक पागल हो गया

आफ़ताब इक़बाल शमीम

मैं हूँ इस शहर में ताख़ीर से आया हुआ शख़्स

अब्बास ताबिश

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