मांग Poetry (page 28)

सवाद-ए-शौक़-ओ-तलब ग़म का बाब ऐसा था

अली वजदान

ऐ नीश-ए-इश्क़ तेरे ख़रीदार क्या हुए

अली वजदान

तख़्लीक़ पे फ़ितरत की गुज़रता है गुमाँ और

अली सरदार जाफ़री

हम जो महफ़िल में तिरी सीना-फ़िगार आते हैं

अली सरदार जाफ़री

न माह-रू न किसी माहताब से हुई थी

अली मुज़म्मिल

मस्ती-ए-गाम भी थी ग़फ़लत-ए-अंजाम के साथ

अली जव्वाद ज़ैदी

बाद-ए-सहरा को रह-ए-शहर पे डाला किस ने

अली अकबर नातिक़

किसी पे बार-ए-दिगर भी निगाह कर न सके

अली अकबर अब्बास

बस एक तिरे ख़्वाब से इंकार नहीं है

आलम ख़ुर्शीद

तू साथ है मगर कहीं तेरा पता नहीं

अकरम नक़्क़ाश

कोई सुनता ही नहीं किस को सुनाने लग जाएँ

अकरम नक़्क़ाश

ग़म का आहंग है

अख़्तर ज़ियाई

इरफ़ान-ओ-आगही के सज़ा-वार हम हुए

अख़्तर ज़ियाई

अभी तो पर भी नहीं तौलता उड़ान को मैं

अख़्तर उस्मान

नज़्र-ए-वतन

अख़्तर शीरानी

दीदनी है ज़ख़्म-ए-दिल और आप से पर्दा भी क्या

अख़्तर सईद ख़ान

जो भी मिल जाता है घर-बार को दे देता हूँ

अख़्तर नज़्मी

नाले मिरे जब तक मिरे काम आते रहेंगे

अख़तर मुस्लिमी

दिल ही रह-ए-तलब में न खोना पड़ा मुझे

अख़तर मुस्लिमी

अब दर्द का सूरज कभी ढलता ही नहीं है

अख्तर लख़नवी

जो संग हो के मुलाएम है सादगी की तरह

अख़तर इमाम रिज़वी

नज़्म

अख़्तर हुसैन जाफ़री

यक-ब-यक मौसम की तब्दीली क़यामत ढा गई

अख़्तर होशियारपुरी

लुटाओ जान तो बनती है बात किस ने कहा

अख़्तर अंसारी अकबराबादी

घुटन अज़ाब-ए-बदन की न मेरी जान में ला

अकबर हैदराबादी

किस चमन की ख़ाक में फूलों का मुस्तक़बिल नहीं

अकबर हैदरी

दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ

अकबर इलाहाबादी

जल्वा-ए-दरबार-ए-देहली

अकबर इलाहाबादी

जब यास हुई तो आहों ने सीने से निकलना छोड़ दिया

अकबर इलाहाबादी

इश्क़-ए-बुत में कुफ़्र का मुझ को अदब करना पड़ा

अकबर इलाहाबादी

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