अलगाव Poetry (page 30)

बन-बास की एक शाम

अहमद फ़राज़

साक़िया एक नज़र जाम से पहले पहले

अहमद फ़राज़

सब जल गया जलते हुए ख़्वाबों के असर से

अहमद अशफ़ाक़

वफ़ा कम है नज़र आती बहुत है

अहमद अल्वी

तख़्ता-ए-मश्क़-ए-सितम मुझ को बनाने वाला

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

रंग जिन के मिट गए हैं उन में यार आने को है

आग़ा हज्जू शरफ़

दिल को अफ़सोस-ए-जवानी है जवानी अब कहाँ

आग़ा हज्जू शरफ़

लैला सर-ब-गरेबाँ है मजनूँ सा आशिक़-ए-ज़ार कहाँ

अफ़ज़ल परवेज़

चुप रहे तो शहर की हंगामा आराई मिली

अफ़ज़ल मिनहास

कोई अच्छी सी ग़ज़ल कानों में मेरे घोल दे

आफ़ताब शम्सी

क्या बताएँ हाल-ए-दिल उन की शनासाई के ब'अद

अफ़सर माहपुरी

ख़याल

अफ़रोज़ आलम

मौज-दर-मौज हवाओं से बचा लाऊँगा

अफ़रोज़ आलम

दुश्मनों को मिरे हमराज़ करोगे शायद

अफ़रोज़ आलम

मुझ को इक अर्सा-ए-दिल-गीर में रक्खा गया था

अफ़ीफ़ सिराज

ज़रा देर बैठे थे तन्हाई में

आदिल मंसूरी

गोल कमरे को सजाता हूँ

आदिल मंसूरी

दर्द तंहाई की पस्ली से निकल कर आया

आदिल मंसूरी

अलिफ़ लफ़्ज़ ओ मआनी से मुबर्रा

आदिल मंसूरी

न कोई रोक सका ख़्वाब के सफ़ीरों को

आदिल मंसूरी

कौन था वो ख़्वाब के मल्बूस में लिपटा हुआ

आदिल मंसूरी

चेहरे पे चमचमाती हुई धूप मर गई

आदिल मंसूरी

बदन पर नई फ़स्ल आने लगी

आदिल मंसूरी

अब टूटने ही वाला है तन्हाई का हिसार

आदिल मंसूरी

तमाम उम्र की तन्हाई की सज़ा दे कर

अदीम हाशमी

मेरे रस्ते में भी अश्जार उगाया कीजे

अदीम हाशमी

बस कोई ऐसी कमी सारे सफ़र में रह गई

अदीम हाशमी

मोहब्बत की सज़ा पाई बहुत है

अदील ज़ैदी

तुम जो आते हो

अबरार अहमद

मजीद-अमजद के लिए

अबरार अहमद

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