अलगाव Poetry (page 31)

और किस का घर कुशादा है कहाँ ठहरेगी रात

आबिद मुनावरी

तुम तो ऐ ख़ुशबू हवाओ उस से मिल कर आ गईं

अब्दुल्लाह कमाल

अपने होने का इक इक पल तजरबा करते रहे

अब्दुल्लाह कमाल

मुझे एहसास ये पल पल रहा है

अब्दुल वहाब सुख़न

हर मसर्रत से किनारा कर लिया

अब्दुल मलिक सोज़

हर मसर्रत से किनारा कर लिया

अब्दुल मलिक सोज़

गो तिरी ज़ुल्फ़ों का ज़िंदानी हूँ मैं

अब्दुल हमीद अदम

होंकते दश्त में इक ग़म का समुंदर देखो

अब्दुल हफ़ीज़ नईमी

आवाज़ के मोती

अब्दुल अहद साज़

हिसार-ए-दीद में जागा तिलिस्म-ए-बीनाई

अब्दुल अहद साज़

उसे मैं ने नहीं देखा

अब्बास ताबिश

मुझे रस्ता नहीं मिलता

अब्बास ताबिश

ये हम को कौन सी दुनिया की धुन आवारा रखती है

अब्बास ताबिश

मेरी तन्हाई बढ़ाते हैं चले जाते हैं

अब्बास ताबिश

नाम ख़ुश्बू था सरापा भी ग़ज़ल जैसा था

अब्बास दाना

बे-वज्ह नहीं उन का बे-ख़ुद को बुलाना है

अब्बास अली ख़ान बेखुद

दिल डूबने लगा है तवानाई चाहिए

आशुफ़्ता चंगेज़ी

मैं अपनी ज़ात की तन्हाई में मुक़य्यद था

आनिस मुईन

तू मेरा है

आनिस मुईन

हो जाएगी जब तुम से शनासाई ज़रा और

आनिस मुईन

रोज़ ख़्वाबों में आ के चल दूँगा

आलोक श्रीवास्तव

लोग तन्हाई का किस दर्जा गिला करते हैं

आल-ए-अहमद सूरूर

हमें तो मय-कदे का ये निज़ाम अच्छा नहीं लगता

आल-ए-अहमद सूरूर

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