प्रभावशीलता Poetry (page 3)

तलख़ीस के बदन में तफ़्सीर बोलती है

सरवर अरमान

लाख हो माज़ी दामन-गीर

सरदार सोज़

ज़ुल्मत है तो फिर शो'ला-ए-शब-गीर निकालो

सलीम शाहिद

तर्ज़-ए-इज़हार में कोई तो नया-पन होता

सलीम शाहिद

मत पूछ हर्फ़-ए-दर्द की तफ़्सीर कुछ भी हो

सलीम शाहिद

हर्फ़-ए-बे-मतलब की मैं ने किस क़दर तफ़्सीर की

सलीम शाहिद

बे-वज़्अ शब-ओ-रोज़ की तस्वीर दिखा कर

सलीम शाहिद

क्या आतिश-ए-फ़ुर्क़त ने बुरी पाई है तासीर

सख़ी लख़नवी

हर शय की अक़ीदत से तस्वीर नहीं बनती

साजिद सिद्दीक़ी लखनवी

ख़ुलूस-ए-शौक़ में 'साहिर' बड़ी तासीर होती है

साहिर सियालकोटी

सर-ए-अर्श-ए-बरीं है ज़ेर-ए-पा-ए-पीर-ए-मय-ख़ाना

साहिर देहल्वी

अहबाब भी हैं ख़ूब कि तश्हीर कर गए

सहबा वहीद

महक रहा है बदन सारा कैसी ख़ुशबू है

सादिक़ इंदौरी

वफ़ा का बंदा हूँ उल्फ़त का पासदार हूँ मैं

साइल देहलवी

आरज़ू भी तो कर नहीं आती

रियाज़ ख़ैराबादी

क़ब्र पर होवें दो न चार दरख़्त

रिन्द लखनवी

मुझ बला-नोश को तलछट भी है काफ़ी साक़ी

रिन्द लखनवी

सदाएँ देते हुए और ख़ाक उड़ाते हुए

रहमान फ़ारिस

सदाएँ देते हुए और ख़ाक उड़ाते हुए

रहमान फ़ारिस

हुस्न पाबंद-ए-हिना हो जैसे

रज़ा हमदानी

सुकूँ है हमनवा-ए-इज़्तिराब आहिस्ता आहिस्ता

रविश सिद्दीक़ी

दौड़े वो मेरे क़त्ल को तलवार खींच कर

रौनक़ टोंकवी

कोई हैरान है याँ कोई दिल-गीर

रासिख़ अज़ीमाबादी

शहर-ए-ग़फ़लत के मकीं वैसे तो कब जागते हैं

राशिद मुफ़्ती

रही न यारो आख़िर सकत हवाओं में

राजेन्द्र मनचंदा बानी

दुख से ग़ैरों के पिघलता कौन है

राजेन्द्र कलकल

शिकवा करने से कोई शख़्स ख़फ़ा होता है

रईस अमरोहवी

रंग लाती भी तो किस तौर जबीं-साई मिरी

राहुल झा

अब के बिखरा तो मैं यकजा नहीं हो पाऊँगा

राहुल झा

बहुत रौशन हम अपना नय्यर-ए-तक़दीर देखेंगे

रहमत इलाही बर्क़ आज़मी

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