प्रभावशीलता Poetry (page 5)

दर्द के चाँद की तस्वीर ग़ज़ल में आए

ग़यास अंजुम

मुझ से आज़ुर्दा जो उस गुल-रू को अब पाते हैं लोग

ग़मगीन देहलवी

ख़ुदाया जज़्बा-ए-दिल की मगर तासीर उल्टी है

ग़ालिब

वाँ उस को हौल-ए-दिल है तो याँ मैं हूँ शर्म-सार

ग़ालिब

फिर इस अंदाज़ से बहार आई

ग़ालिब

पए-नज़्र-ए-करम तोहफ़ा है शर्म-ए-ना-रसाई का

ग़ालिब

नहीं है ज़ख़्म कोई बख़िये के दर-ख़ुर मिरे तन में

ग़ालिब

माना-ए-दश्त-नवर्दी कोई तदबीर नहीं

ग़ालिब

कभी नेकी भी उस के जी में गर आ जाए है मुझ से

ग़ालिब

इश्क़ तासीर से नौमीद नहीं

ग़ालिब

हुई ताख़ीर तो कुछ बाइस-ए-ताख़ीर भी था

ग़ालिब

निगाह-ए-हुस्न की तासीर बन गया शायद

फ़ितरत अंसारी

कुछ न कुछ इश्क़ की तासीर का इक़रार तो है

फ़िराक़ गोरखपुरी

कुछ काम तो आया दिल-ए-नाकाम हमारा

फ़िगार उन्नावी

उस की हर बात ने जादू सा किया था पहले

फ़े सीन एजाज़

लटकाई दीवार पे किस ने हातिम की तस्वीर

फ़सीह अकमल

कुश्तगान-ए-ख़ंजर-ए-तस्लीम-रा

फर्रुख यार

इक ख़लिश सी है मुझे तक़दीर से

फ़रहत कानपुरी

तेरा निगाह-ए-शौक़ कोई राज़-दाँ न था

फ़ानी बदायुनी

शबाब-ए-होश कि फ़िल-जुमला यादगार हुई

फ़ानी बदायुनी

मर कर मरीज़-ए-ग़म की वो हालत नहीं रही

फ़ानी बदायुनी

ख़ुद मसीहा ख़ुद ही क़ातिल हैं तो वो भी क्या करें

फ़ानी बदायुनी

डरो न तुम कि न सुन ले कहीं ख़ुदा मेरी

फ़ानी बदायुनी

आह से या आह की तासीर से

फ़ानी बदायुनी

मदह

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मिटा के तीरगी तनवीर चाहता है दिल

फ़ैय्याज़ रश्क़

मायूस-ए-अज़ल हूँ ये माना नाकाम-ए-तमन्ना रहना है

दिल शाहजहाँपुरी

चमन में सुब्ह ये कहती थी हो कर चश्म-ए-तर शबनम

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

मुमकिन नहीं कि तेरी मोहब्बत की बू न हो

दाग़ देहलवी

भला हो पीर-ए-मुग़ाँ का इधर निगाह मिले

दाग़ देहलवी

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