वीरानी Poetry (page 5)

मिरी हस्ती फ़ज़ा-ए-हैरत आबाद-ए-तमन्ना है

ग़ालिब

किसी को दे के दिल कोई नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ क्यूँ हो

ग़ालिब

देख कर दर-पर्दा गर्म-ए-दामन-अफ़्शानी मुझे

ग़ालिब

आमद-ए-सैलाब-ए-तूफ़ान-ए-सदा-ए-आब है

ग़ालिब

मैं जिस जगह हूँ वहाँ बूद-ओ-बाश किस की है

फ़ाज़िल जमीली

ख़िज़ाँ का रंग दरख़्तों पे आ के बैठ गया

फ़ाज़िल जमीली

तुम्हारे रंग फीके पड़ गए नाँ?

फरीहा नक़वी

बीते ख़्वाब की आदी आँखें कौन उन्हें समझाए

फरीहा नक़वी

सहरा के संगीन सफ़र में आब-रसानी कम न पड़े

फ़रहत एहसास

तो मुझे एक झलक भी नहीं दिखलानी क्या

फ़राज़ महमूद फ़ारिज़

कहें हम क्या किसी से दिल की वीरानी नहीं जाती

फ़रह इक़बाल

एक मुद्दत से यहाँ ठहरा हुआ पानी है

फ़रह इक़बाल

जो दिल को पहले मयस्सर था क्या हुआ उस का

फ़ैज़ी

चंद रोज़ और मिरी जान

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

कई बार इस का दामन भर दिया हुस्न-ए-दो-आलम से

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

अब जो कोई पूछे भी तो उस से क्या शरह-ए-हालात करें

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

सब्ज़ रुतों में क़दीम घरों की ख़ुशबू

फ़हीम शनास काज़मी

आहिस्ता से गुज़रो

फ़हीम शनास काज़मी

मंज़र-ए-वक़्त की यकसानी में बैठा हुआ हूँ

एजाज़ गुल

रेत मुट्ठी में भरी पानी से आग़ाज़ किया

दानियाल तरीर

साफ़ कब इम्तिहान लेते हैं

दाग़ देहलवी

देख कर जौबन तिरा किस किस को हैरानी हुई

दाग़ देहलवी

हर सम्त है वीरानी सी वीरानी का आलम

बिस्मिल आग़ाई

सब उम्र तो जारी नहीं रहता है सफ़र भी

बिस्मिल आग़ाई

सौ सदियों का नौहा है

बिल्क़ीस ख़ान

रंग ले कर नया उदासी का

बिल्क़ीस ख़ान

दानिस्ता जो हो न सके नादानी से हो जाता है

भारत भूषण पन्त

क़फ़स की तीलियों से ले के शाख़-ए-आशियाँ तक है

बेदम शाह वारसी

रोज़-ए-वहशत है मिरे शहर में वीरानी की

बाक़ी अहमदपुरी

खेत से बच कर गुज़रे बस्ती को वीरानी दे

बाक़र नक़वी

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