वीरानी Poetry (page 7)

बस्ती बस्ती पर्बत पर्बत वहशत की है धूप 'ज़िया'

अहमद ज़िया

प्यार किया था तुम से मैं ने अब एहसान जताना क्या

अहमद ज़िया

ख़ुश नहीं आए बयाबाँ मिरी वीरानी को

अहमद शहरयार

फेंकते संग-ए-सदा दरिया-ए-वीरानी में हम

अहमद महफ़ूज़

चाक करते हैं गरेबाँ इस फ़रावानी से हम

अहमद जावेद

मकाशफ़ा

अहमद हमेश

ऐसी भी कहाँ बे-सर-ओ-सामानी हुई है

अहमद अज़ीम

बना रक्खी हैं दीवारों पे तस्वीरें परिंदों की

अफ़ज़ल ख़ान

हमारे ख़ून के प्यासे पशेमानी से मर जाएँ

अफ़ज़ल ख़ान

ज़मीर-ए-नौ-ए-इंसानी के दिन हैं

अबु मोहम्मद सहर

वक़्त गुज़रता नहीं

अबरार अहमद

कोई मंज़र भी नहीं अच्छा लगा

आबिद वदूद

जब से दरिया में है तुग़्यानी बहुत

आबिद वदूद

अजनबी

आबिद आलमी

देख कर मेरी अना किस दर्जा हैरानी में है

अब्दुस्समद ’तपिश’

गो तिरी ज़ुल्फ़ों का ज़िंदानी हूँ मैं

अब्दुल हमीद अदम

एक ना-मक़बूल क़ुर्बानी हूँ मैं

अब्दुल हमीद अदम

मकाँ-भर हम को वीरानी बहुत है

अब्बास ताबिश

खा के सूखी रोटियाँ पानी के साथ

अब्बास ताबिश

जीवन को दुख दुख को आग और आग को पानी कहते

आनिस मुईन

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