जाति Poetry (page 13)

कोई भूली हुई शय ताक़-ए-हर-मंज़र पे रक्खी थी

राजेन्द्र मनचंदा बानी

बहुत कुछ मुंतज़िर इक बात का था

राजेन्द्र मनचंदा बानी

अली-बिन-मुत्तक़ी रोया

राजेन्द्र मनचंदा बानी

हिसार-ए-ज़ात से निकलूँ तो तुझ से बात करूँ

राज कुमार क़ैस

रेत का शहर

रईस फ़रोग़

तुम ऐ रईस! अब न अगर और मगर करो

रईस अमरोहवी

मैं जो तन्हा रह-ए-तलब में चला

रईस अमरोहवी

अब के बिखरा तो मैं यकजा नहीं हो पाऊँगा

राहुल झा

निकलो हिसार-ए-ज़ात से तो कुछ सुझाई दे

रहमत क़रनी

कभी किसी से न हम ने कोई गिला रक्खा

इरफ़ान सत्तार

जो बे-रुख़ी का रंग बहुत तेज़ मुझ में है

इरफ़ान सत्तार

चुप है आग़ाज़ में, फिर शोर-ए-अजल पड़ता है

इरफ़ान सत्तार

ब-ज़ोम-ए-अक़्ल ये कैसा गुनाह मैं ने किया

इरफ़ान सत्तार

मूँद कर आँखें तलाश-ए-बहर-ओ-बर करने लगे

इक़बाल साजिद

ख़ुश्क उस की ज़ात का सातों समुंदर हो गया

इक़बाल साजिद

हर एक शख़्स के विज्दान से ख़िताब करे

इंतिख़ाब सय्यद

है मुझ को रब्त बस-कि ग़ज़ालान-ए-रम के साथ

इंशा अल्लाह ख़ान

दस अक़्ल दस मक़ूले दस मुद्रिकात तीसों

इंशा अल्लाह ख़ान

आने अटक अटक के लगी साँस रात से

इंशा अल्लाह ख़ान

ख़ुदा से कलाम

इंजिला हमेश

बाज़याफ़्त

इंजिला हमेश

उधर जो शख़्स भी आया उसे जवाब हुआ

इनाम कबीर

कभी तो चश्म-ए-फ़लक में हया दिखाई दे

इनआम आज़मी

परिंदा आइने से क्या लड़ेगा

इमरान आमी

मैं गिला तुम से करूँ ऐ यार किस किस बात का

इमदाद अली बहर

लम्हा मिरी गिरफ़्त में आया निकल गया

इम्दाद आकाश

सनम कूचा तिरा है और मैं हूँ

इमाम बख़्श नासिख़

मौसम सूखा सूखा सा था लेकिन ये क्या बात हुई

इमाम अाज़म

मौत सी ख़मोशी जब उन लबों पे तारी की

इकराम मुजीब

अबू-तालिब के बेटे

इफ़्तिख़ार आरिफ़

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