जाति Poetry (page 26)

हसीन ख़्वाब न दे अब यक़ीन-ए-सादा दे

अब्दुल्लाह कमाल

रूह को क़ालिब के अंदर जानना मुश्किल हुआ

अब्दुल्लाह जावेद

ख़ुदा ने गढ़ तो दिया आलम-ए-वजूद मगर

अब्दुल हमीद अदम

खुली वो ज़ुल्फ़ तो पहली हसीन रात हुई

अब्दुल हमीद अदम

क़ुर्ब नस नस में आग भरता है

अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद

आई हवा न रास जो सायों के शहर की

अब्दुल अहद साज़

'सादेम'

अब्दुल अहद साज़

खुली जब आँख तो देखा कि दुनिया सर पे रक्खी है

अब्दुल अहद साज़

खिले हैं फूल की सूरत तिरे विसाल के दिन

अब्दुल अहद साज़

बंद फ़सीलें शहर की तोड़ें ज़ात की गिरहें खोलें

अब्दुल अहद साज़

वो चाँद हो कि चाँद सा चेहरा कोई तो हो

अब्बास ताबिश

सदा-ए-ज़ात के ऊँचे हिसार में गुम है

अब्बास ताबिश

दर-ए-उफ़ुक़ पे रक़म रौशनी का बाब करें

अब्बास ताबिश

बेवफ़ाई उस ने की मेरी वफ़ा अपनी जगह

अब्बास दाना

उल्फ़तों का ख़ुदा नहीं हूँ मैं

अातिश इंदौरी

काग़ज़ क़लम दवात के अंदर रुक जाता है

अस्नाथ कंवल

मैं अपनी ज़ात की तन्हाई में मुक़य्यद था

आनिस मुईन

क्यूँ खुल गए लोगों पे मिरी ज़ात के असरार

आनिस मुईन

हो जाएगी जब तुम से शनासाई ज़रा और

आनिस मुईन

नए ज़माने के नित-नए हादसात लिखना

आनन्द सरूप अंजुम

शिद्दत-ए-ज़ात ने ये हाल बनाया अपना

आग़ा अकबराबादी

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