जाति Poetry (page 25)

किस को मालूम है क्या होगा नज़र से पहले

अहमद हमेश

नहीं मिलते वो अब तो क्या बात है

अहमद हमदानी

मुज़्तरिब हैं वक़्त के ज़र्रात सूरज से कहो

अहमद हमदानी

सफ़ेद छड़ियाँ

अहमद फ़राज़

कनीज़

अहमद फ़राज़

जब से हुआ है इश्क़ तिरे इस्म-ए-ज़ात का

आग़ा हज्जू शरफ़

मैं अपनी ज़ात में जब से सितारा होने लगा

अफ़ज़ल गौहर राव

मेरे गले से आन के प्यारा जो फिर लगे

आफ़ताब शाह आलम सानी

फिर बपा शहर में अफ़रातफ़री कर जाए

आफ़ताब इक़बाल शमीम

तिरे बदन के गुलिस्ताँ की याद आती है

आफ़ताब हुसैन

ये जब्र भी है बहुत इख़्तियार करते हुए

आफ़ताब हुसैन

क़दम क़दम पे किसी इम्तिहाँ की ज़द में है

आफ़ताब हुसैन

कहूँ जो कर्ब फ़क़त कर्ब-ए-ज़ात समझोगे

आफ़ताब आरिफ़

अजीब चीज़ मोहब्बत की वारदात भी है

अफ़सर माहपुरी

कुछ भी नहीं जो याद-ए-बुतान-ए-हसीं नहीं

अफ़सर इलाहाबादी

ज़मीं छोड़ कर मैं किधर जाऊँगा

आदिल मंसूरी

हम अपना आप लुटाने कहाँ पे आ गए हैं

अदील ज़ैदी

अगर मेरी जबीन-ए-शौक़ वक़्फ़-ए-बंदगी होती

अबु मोहम्मद वासिल

बे-रब्ती-ए-हयात का मंज़र भी देख ले

अबु मोहम्मद सहर

तीर-अंदाजों को अंदाज़ा नहीं

अबसार अब्दुल अली

सन्नाटे का दर्द निखारा करता हूँ

अबरार आज़मी

दश्त में छाँव कोई ढूँड निकाली जाए

आबिद करहानी

न कर्ब-ए-हिज्र न कैफ़्फ़ियत-ए-विसाल में हूँ

आबिद हशरी

फ़सील-ए-जिस्म गिरा दे मकान-ए-जाँ से निकल

अभिषेक शुक्ला

अब इख़्तियार में मौजें न ये रवानी है

अभिषेक शुक्ला

अब निशाना उस की अपनी ज़ात है

अब्दुस्समद ’तपिश’

मेज़ क़लम क़िर्तास दरीचा सन्नाटा

अब्दुर्राहमान वासिफ़

फ़रेब-ए-ज़ार मोहब्बत-नगर खुला हुआ है

अब्दुर्राहमान वासिफ़

अपनी ही ज़ात के सहरा में सुलगते हुए लोग

अब्दुर्रहीम नश्तर

दश्त-ए-अफ़्कार में सूखे हुए फूलों से मिले

अब्दुर्रहीम नश्तर

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