जाति Poetry (page 15)

बे-कराँ दरिया हूँ ग़म का और तुग़्यानी में हूँ

हमीद नसीम

कुछ बात ही थी ऐसी कि थामे जिगर गए

हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा

दिल-लगी अपनी तिरे ज़िक्र से किस रात न थी

हैदर अली आतिश

नाज़नीं जिन के कुछ नियाज़ नहीं

हफ़ीज़ जौनपुरी

ये मुलाक़ात मुलाक़ात नहीं होती है

हफ़ीज़ जालंधरी

अर्ज़-ए-हुनर भी वज्ह-ए-शिकायात हो गई

हफ़ीज़ जालंधरी

हिसार-ए-ज़ात के दीवार-ओ-दर में क़ैद रहे

हफ़ीज़ बनारसी

ऐ ग़म-ए-हिज्र रात कितनी है

ग्यान चन्द मंसूर

उड़ना तो बहुत उड़ना अफ़्लाक पे जा रहना

गुलज़ार वफ़ा चौदरी

मुंतशिर हो कर रहे ये ऐसा शीराज़ा न था

गुलज़ार वफ़ा चौदरी

न कोई दीन होता है न कोई ज़ात होती है

गुलशन बरेलवी

क़दमों से मेरे गर्द-ए-सफ़र कौन ले गया

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

मिरी सिफ़ात का जब उस ने ए'तिराफ़ किया

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

जो मुझ पे भारी हुई एक रात अच्छी तरह

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

पहले इक शख़्स मेरी ज़ात बना

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

एक ज़ाती नज़्म

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

पहले इक शख़्स मेरी ज़ात बना

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

आँधी में भी चराग़ मगन है सबा के साथ

ग़ौसिया ख़ान सबीन

न पूछ हिज्र में जो हाल अब हमारा है

ग़मगीन देहलवी

जबीन-ए-शौक़ पे गर्द-ए-मलाल चाहती है

ग़ालिब अयाज़

मस्जिद के ज़ेर-ए-साया ख़राबात चाहिए

ग़ालिब

दिल तमाम आईने तीरा कौन रौशन कौन

गौहर होशियारपुरी

मैं और मिरी ज़ात अगर एक ही शय हैं

फ़ुज़ैल जाफ़री

हर सम्त लहू-रंग घटा छाई सी क्यूँ है

फ़ुज़ैल जाफ़री

तमाम जिस्म की परतें जुदा जुदा करके

फ़िज़ा कौसरी

हिण्डोला

फ़िराक़ गोरखपुरी

सुना तो है कि कभी बे-नियाज़-ए-ग़म थी हयात

फ़िराक़ गोरखपुरी

अब दौर-ए-आसमाँ है न दौर-ए-हयात है

फ़िराक़ गोरखपुरी

आँखों में जो बात हो गई है

फ़िराक़ गोरखपुरी

तोहफ़ा-ए-ग़म भी मिला दर्द की सौग़ात के बा'द

फ़ाज़िल अंसारी

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