समय Poetry (page 27)

मुझ से मत पूछ मिरा हाल-ए-दरूँ रहने दे

अख़लाक़ बन्दवी

चर्ख़ भी छू लें तो जाना है इसी मिट्टी में

अख़लाक़ बन्दवी

जुनून-ए-इश्क़ का जो कुछ हुआ अंजाम क्या कहिए

अख़गर मुशताक़ रहीमाबादी

जिन पे अजल तारी थी उन को ज़िंदा करता है

अकबर हैदराबादी

जिन के नसीब में आब-ओ-दाना कम कम होता है

अकबर हैदराबादी

कहा था उस ने मोहब्बत की आबरू रखना

अकबर हमीदी

लोग कहते हैं बदलता है ज़माना सब को

अकबर इलाहाबादी

जल्वा-ए-दरबार-ए-देहली

अकबर इलाहाबादी

वो हवा न रही वो चमन न रहा वो गली न रही वो हसीं न रहे

अकबर इलाहाबादी

उन्हें निगाह है अपने जमाल ही की तरफ़

अकबर इलाहाबादी

न रूह-ए-मज़हब न क़ल्ब-ए-आरिफ़ न शाइराना ज़बान बाक़ी

अकबर इलाहाबादी

कहाँ वो अब लुत्फ़-ए-बाहमी है मोहब्बतों में बहुत कमी है

अकबर इलाहाबादी

दश्त-ए-ग़ुर्बत है अलालत भी है तन्हाई भी

अकबर इलाहाबादी

बहुत रहा है कभी लुत्फ़-ए-यार हम पर भी

अकबर इलाहाबादी

वही बे-बाकी-ए-उश्शाक़ है दरकार अब भी

अजमल सिराज

खुल के बरसना और बरस कर फिर खुल जाना देखा है

अजमल सिद्दीक़ी

ऐ हुस्न जब से राज़ तिरा पा गए हैं हम

अजमल अजमली

आज़ार बहुत लज़्ज़त-ए-आज़ार बहुत है

अजमल अजमली

यूँ तुझ से दूर दूर रहूँ ये सज़ा न दे

आजिज़ मातवी

यूँ ही हर बात पे हँसने का बहाना आए

अजय सहाब

भूल पाए न तुझे आज भी रोने वाले

अजय सहाब

तही-दामन बरहना-पा रवाना हो गया हूँ

ऐनुद्दीन आज़िम

कारोबारी शहरों में ज़ेहन-ओ-दिल मशीनें हैं जिस्म कारख़ाना है

ऐनुद्दीन आज़िम

ग़म का पहाड़ मोम के जैसे पिघल गया

अहमद निसार

तरस रहा हूँ क़रार-ए-दिल-ओ-नज़र के लिए

अहमद ज़फ़र

यहाँ हर लफ़्ज़ मअनी से जुदा है

अहमद शनास

तसव्वुर को जगा रक्खा है उस ने

अहमद शनास

होता न कोई कार-ए-ज़माना मिरे सुपुर्द

अहमद रिज़वान

किसी को छोड़ देता हूँ किसी के साथ चलता हूँ

अहमद रिज़वान

आँखें बनाता दश्त की वुसअत को देखता

अहमद रिज़वान

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