समय Poetry (page 38)

दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभाने वाला

अहमद फ़राज़

अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें

अहमद फ़राज़

क्या हुए लोग पुराने जिन्हें देखा भी नहीं

अहमद अता

वो ज़माना है कि अब कुछ नहीं दीवाने में

अहमद अता

ये अलग बात कि तज्दीद-ए-तअल्लुक़ न हुआ

अहमद अशफ़ाक़

सब जल गया जलते हुए ख़्वाबों के असर से

अहमद अशफ़ाक़

हम तिरे इश्क़ में कुछ ऐसे ठिकाने लग जाएँ

अहमद अशफ़ाक़

नर्म रेशम सी मुलाएम किसी मख़मल की तरह

आग़ाज़ बलडांवी

रुख़्सार के परतव से बिजली की नई धज है

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

नाहक़ ओ हक़ का उन्हें ख़ौफ़-ओ-ख़तर कुछ भी नहीं

आग़ा हज्जू शरफ़

मैं ख़ुद को इस लिए मंज़र पे लाने वाला नहीं

अफ़ज़ल गौहर राव

यूँ इलाज-ए-दिल बीमार किया जाएगा

अफ़ज़ल इलाहाबादी

मिरी दीवानगी की हद न पूछो तुम कहाँ तक है

अफ़ज़ल इलाहाबादी

अब तो हर एक अदाकार से डर लगता है

अफ़ज़ल इलाहाबादी

किताब-ए-ख़ाक पढ़ी ज़लज़ले की रात उस ने

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

सहाब-ए-सब्ज़ न ताऊस-ए-नीलमीं लाया

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

कहीं सोता न रह जाऊँ सदा दे कर जगाओ ना

आफ़ताब इक़बाल शमीम

जब चाहा ख़ुद को शाद या नाशाद कर लिया

आफ़ताब इक़बाल शमीम

इक फ़ना के घाट उतरा एक पागल हो गया

आफ़ताब इक़बाल शमीम

असीर-ए-हाफ़िज़ा हो आज के जहान में आओ

आफ़ताब इक़बाल शमीम

बदल रहे हैं ज़माने के रंग क्या क्या देख

आफ़ताब हुसैन

ज़रा सी देर को चमका था वो सितारा कहीं

आफ़ताब हुसैन

तुम्हारे बाद रहा क्या है देखने के लिए

आफ़ताब हुसैन

निगाह के लिए इक ख़्वाब भी ग़नीमत है

आफ़ताब हुसैन

किसी निशाँ से अलामत से या सनद से न हो

आफ़ताब अहमद

तुम्हारे हिज्र में क्यूँ ज़िंदगी न मुश्किल हो

अफ़सर इलाहाबादी

दुश्मनों को मिरे हमराज़ करोगे शायद

अफ़रोज़ आलम

ऐसे डरे हुए हैं ज़माने की चाल से

आदिल मंसूरी

हश्र की सुब्ह दरख़्शाँ हो मक़ाम-ए-महमूद

आदिल मंसूरी

हर ख़्वाब काली रात के साँचे में ढाल कर

आदिल मंसूरी

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