ऐसे डरे हुए हैं ज़माने की चाल से
घर में भी पाँव रखते हैं हम तो सँभाल कर
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नज़्म
अब टूटने ही वाला है तन्हाई का हिसार
दर्द तंहाई की पस्ली से निकल कर आया
ज़मीं छोड़ कर मैं किधर जाऊँगा
नींद भी जागती रही पूरे हुए न ख़्वाब भी
तू किस के कमरे में थी
कौन था वो ख़्वाब के मल्बूस में लिपटा हुआ
यादों ने उसे तोड़ दिया मार के पत्थर
नश्शा सा डोलता है तिरे अंग अंग पर
हुदूद-ए-वक़्त से बाहर अजब हिसार में हूँ
हम्माम के आईने में शब डूब रही थी
गिरते रहे नुजूम अंधेरे की ज़ुल्फ़ से