यादों ने उसे तोड़ दिया मार के पत्थर
आईने की ख़ंदक़ में जो परछाईं पड़ी थी
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Parveen Shakir
Rahat Indori
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(904) Peoples Rate This
सातवीं पिसली में पीली चाँदनी
मुझे पसंद नहीं ऐसे कारोबार में हूँ
फिर कोई वुसअत-ए-आफ़ाक़ पे साया डाले
किस तरह जमा कीजिए अब अपने आप को
दरिया की वुसअतों से उसे नापते नहीं
होने को यूँ तो शहर में अपना मकान था
तस्वीर में जो क़ैद था वो शख़्स रात को
सफ़ेद रात से मंसूब है लहू का ज़वाल
आशिक़ थे शहर में जो पुराने शराब के
जीता है सिर्फ़ तेरे लिए कौन मर के देख
जो चुप-चाप रहती थी दीवार पर
हश्र की सुब्ह दरख़्शाँ हो मक़ाम-ए-महमूद