गिरते रहे नुजूम अंधेरे की ज़ुल्फ़ से
शब भर रहीं ख़मोशियाँ सायों से हम-कनार
Jaun Eliya
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Javed Akhtar
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Rahat Indori
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Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
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कब से टहल रहे हैं गरेबान खोल कर
एक क़तरा अश्क का छलका तो दरिया कर दिया
रात और दिन के दरमियाँ कोई
कोई ख़ुद-कुशी की तरफ़ चल दिया
चुप-चाप बैठे रहते हैं कुछ बोलते नहीं
दरवाज़ा बंद देख के मेरे मकान का
ज़रा देर बैठे थे तन्हाई में
फ़ैज़
आवाज़ की दीवार भी चुप-चाप खड़ी थी
पानी को पत्थर कहते हैं
फिर किसी ख़्वाब के पर्दे से पुकारा जाऊँ