चुप-चाप बैठे रहते हैं कुछ बोलते नहीं
बच्चे बिगड़ गए हैं बहुत देख-भाल से
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बिस्मिल के तड़पने की अदाओं में नशा था
साँस की आँच ज़रा तेज़ करो
पानी को पत्थर कहते हैं
आमीन
यादों ने उसे तोड़ दिया मार के पत्थर
नज़्म
कौन था वो ख़्वाब के मल्बूस में लिपटा हुआ
हज का सफ़र है इस में कोई साथ भी तो हो
फिर बालों में रात हुई
वालिद के इंतिक़ाल पर
फिर कोई वुसअत-ए-आफ़ाक़ पे साया डाले
तू किस के कमरे में थी