कोई ख़ुद-कुशी की तरफ़ चल दिया
उदासी की मेहनत ठिकाने लगी
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वो बरसात की शब वो पिछ्ला पहर
वक़्त की पीठ पर
ख़ुद-ब-ख़ुद शाख़ लचक जाएगी
वुसअत-ए-दामन-ए-सहरा देखूँ
सितारा सो गया है
गिरते रहे नुजूम अंधेरे की ज़ुल्फ़ से
ज़मीं छोड़ कर मैं किधर जाऊँगा
हम्माम के आईने में शब डूब रही थी
फैले हुए हैं शहर में साए निढाल से
किस तरह जमा कीजिए अब अपने आप को
ये फैलती शिकस्तगी एहसास की तरफ़
आमीन