ख़ुद-ब-ख़ुद शाख़ लचक जाएगी
फल से भरपूर तो हो लेने दो
Wasi Shah
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
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Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Anwar Masood
Rahat Indori
Gulzar
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रात और दिन के दरमियाँ कोई
इबलाग़ के बदन में तजस्सुस का सिलसिला
तंग तारीक गली में कुत्ता
जो चुप-चाप रहती थी दीवार पर
गोश्त की सड़कों पर
नश्शा सा डोलता है तिरे अंग अंग पर
फूलों की सेज पर ज़रा आराम क्या किया
फिर किसी ख़्वाब के पर्दे से पुकारा जाऊँ
एक मंज़र
बदन पर नई फ़स्ल आने लगी
ख़्वाहिश सुखाने रक्खी थी कोठे पे दोपहर
बिस्मिल के तड़पने की अदाओं में नशा था