कब से टहल रहे हैं गरेबान खोल कर
ख़ाली घटा को क्या करें बरसात भी तो हो
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फ़ैज़
आमीन
गोश्त की सड़कों पर
फिर किसी ख़्वाब के पर्दे से पुकारा जाऊँ
सितारा सो गया है
वालिद के इंतिक़ाल पर
हर ख़्वाब काली रात के साँचे में ढाल कर
फिर कोई वुसअत-ए-आफ़ाक़ पे साया डाले
चाँद के पेट में हमल मछली
कौन था वो ख़्वाब के मल्बूस में लिपटा हुआ
शुऊर नीली रुतूबतों में उलझ गया है