कब तक पड़े रहोगे हवाओं के हाथ में
कब तक चलेगा खोखले शब्दों का कारोबार
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Rahat Indori
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Wasi Shah
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
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आशिक़ थे शहर में जो पुराने शराब के
हुआ ख़त्म दरिया तो सहरा लगा
हज का सफ़र है इस में कोई साथ भी तो हो
दरिया की वुसअतों से उसे नापते नहीं
ख़ुद-ब-ख़ुद शाख़ लचक जाएगी
ख़्वाहिश सुखाने रक्खी थी कोठे पे दोपहर
जीता है सिर्फ़ तेरे लिए कौन मर के देख
चेहरे पे चमचमाती हुई धूप मर गई
बिस्मिल के तड़पने की अदाओं में नशा था
हश्र की सुब्ह दरख़्शाँ हो मक़ाम-ए-महमूद
इबलाग़ के बदन में तजस्सुस का सिलसिला
फैले हुए हैं शहर में साए निढाल से