नींद भी जागती रही पूरे हुए न ख़्वाब भी
सुब्ह हुई ज़मीन पर रात ढली मज़ार में
Allama Iqbal
Rahat Indori
Habib Jalib
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Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Anwar Masood
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
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फिर बालों में रात हुई
पत्थर पर तस्वीर बना कर
चेहरे पे चमचमाती हुई धूप मर गई
आशिक़ थे शहर में जो पुराने शराब के
तू किस के कमरे में थी
दूर उफ़ुक़ के पार से आवाज़ के पर्वरदिगार
सियाह सायों की तिश्नगी में
हश्र की सुब्ह दरख़्शाँ हो मक़ाम-ए-महमूद
फ़ैज़
बुध
फूलों की सेज पर ज़रा आराम क्या किया
साँस की आँच ज़रा तेज़ करो