समय Poetry (page 4)

न जाने क्यूँ मुझे उस से ही ख़ौफ़ लगता है

वसीम बरेलवी

मिली हवाओं में उड़ने की वो सज़ा यारो

वसीम बरेलवी

मिरी वफ़ाओं का नश्शा उतारने वाला

वसीम बरेलवी

क्या दुख है समुंदर को बता भी नहीं सकता

वसीम बरेलवी

कुछ इतना ख़ौफ़ का मारा हुआ भी प्यार न हो

वसीम बरेलवी

हमारा अज़्म-ए-सफ़र कब किधर का हो जाए

वसीम बरेलवी

दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता

वसीम बरेलवी

अपने साए को इतना समझाने दे

वसीम बरेलवी

अंधेरा ज़ेहन का सम्त-ए-सफ़र जब खोने लगता है

वसीम बरेलवी

ज़िंदगी इतनी बे-मज़ा क्यूँ है

वक़ार हिल्म सय्यद नगलवी

ज़बाँ तक जो न आए वो मोहब्बत और होती है

वामिक़ जौनपुरी

जो मरीज़ इश्क़ के हैं उन को शिफ़ा है कि नहीं

वलीउल्लाह मुहिब

इस ज़माने में बुज़ुर्गी सिफ़्लगी का नाम है

वली उज़लत

अरे उल्टे ज़माने मुझ पे क्या सीधा सितम लाया

वली उज़लत

इश्क़ बेताब-ए-जाँ-गुदाज़ी है

वली मोहम्मद वली

यूँ भी जीने के बहाने निकले

वली आलम शाहीन

कभी भूले से भी अब याद भी आती नहीं जिन की

वाली आसी

सुनो ये ग़म की सियह रात जाने वाली है

वाली आसी

बहुत दिन से कोई मंज़र बनाना चाहते हैं हम

वाली आसी

याद में अपने यार-ए-जानी की

वाजिद अली शाह अख़्तर

इस ज़माने में ख़मोशी से निकलता नहीं काम

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

आँख में जल्वा तिरा दिल में तिरी याद रहे

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

ग़ैर-मुमकिन है कि मिट जाए सनम की सूरत

वाहिद प्रेमी

उलझी थी जिन में एक ज़माने से ज़िंदगी

वहीदा नसीम

मिज़्गाँ पे आज यास के मोती बिखर गए

वहीदा नसीम

ज़बान-ए-ख़ल्क़ पे आया तो इक फ़साना हुआ

वहीद अख़्तर

अँधेरा इतना नहीं है कि कुछ दिखाई न दे

वहीद अख़्तर

शाम के दिन रात

वहीद अहमद

कोई बस्ती कि मुझ में बस्ती है

वहीद अहमद

तन्हाई में दिखते लम्हे जब कुछ याद दिलाते हैं

विश्वनाथ दर्द

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