जहर Poetry (page 16)

आवारा हूँ रैन-बसेरा कोई नहीं मेरा

अनवर शऊर

सफ़ीना ले गए मौजों की गर्म-जोशी में

अनवर सदीद

दीवार पर लिखा न पढ़ो और ख़ुश रहो

अनवर सदीद

मख़मली ख़्वाब का आँखों में न मंज़र फैला

अनवर मीनाई

आज मुझे कुछ लोग मिले हैं पागल से

अनवर मीनाई

दुनिया भी अजब क़ाफ़िला-ए-तिश्ना-लबाँ है

अनवर मसूद

दरमियाँ गर न तिरा वादा-ए-फ़र्दा होता

अनवर मसूद

कब लज़्ज़तों ने ज़ेहन का पीछा नहीं किया

अनवर अंजुम

पुराना ज़हर नए नाम से मिला है मुझे

अंजुम सलीमी

मुहाजिर परिंदों का स्वागत

अंजुम सलीमी

जब भी कोई बात की आँसू ढलके साथ

अंजुम रूमानी

हर चंद उन्हें अहद फ़रामोश न होगा

अंजुम रूमानी

तुम को भुला रही थी कि तुम याद आ गए

अंजुम रहबर

तुम को भुला रही थी कि तुम याद आ गए

अंजुम रहबर

ख़ुद-कुशी करने में भी नाकाम रह जाते हैं हम

अंजुम लुधियानवी

हम सा दीवाना कहाँ मिल पाएगा इस दहर में

अंजुम लुधियानवी

पथरीली सी शाम में तुम ने ऐसे याद किया जानम

अनीस अंसारी

इस शहर के लोग अजीब से हैं अब सब ही तुम्हारे असीर हुए

अनीस अंसारी

बड़ा आज़ार-ए-जाँ है वो अगरचे मेहरबाँ है वो

अनीस अंसारी

जान-ए-अफ़्साना यही कुछ भी हो अफ़्साने का नाम

आनंद नारायण मुल्ला

कारवान-ए-हयात

अमजद नजमी

अपनी हस्ती को यहाँ बे-मुद्दआ समझा था मैं

अमजद नजमी

ख़्वाब जो बिखर गए

आमिर उस्मानी

इल्तिजा

आमिर उस्मानी

ग़ज़लों से तज्सीम हुई तकमील हुई

अमीर हम्ज़ा साक़िब

वो सर-फिरी हवा थी सँभलना पड़ा मुझे

अमीर क़ज़लबाश

हर गाम हादसा है ठहर जाइए जनाब

अमीर क़ज़लबाश

अमीर लाख इधर से उधर ज़माना हुआ

अमीर मीनाई

'अमीक़' छेड़ ग़ज़ल ग़म की इंतिहा कब है

अमीक़ हनफ़ी

जंगल

अम्बरीन सलाहुद्दीन

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