जहर Poetry (page 14)

दीमक

बाक़र मेहदी

ज़र्रे का राज़ मेहर को समझाना चाहिए

बाक़र मेहदी

अजीब दिल में मिरे आज इज़्तिराब सा है!

बाक़र मेहदी

अब उजड़ने के हम न बसने के

बकुल देव

टुकड़े नहीं हैं आँसुओं में दिल के चार पाँच

ज़फ़र

न उस का भेद यारी से न अय्यारी से हाथ आया

ज़फ़र

महसूस हो रहा है जो ग़म मेरी ज़ात का

बदीउज़्ज़माँ ख़ावर

हाथ खोल दिए जाएँ

अज़रा अब्बास

दुनिया के लिए ज़हर न खालें कोई हम भी

अज़लान शाह

अहद-नामा-ए-इमराेज़

अज़ीज़ क़ैसी

धूप के जाते ही मर जाऊँगा मैं

अज़ीज़ नबील

फूट निकला ज़हर सारे जिस्म में

अज़ीज़ लखनवी

आतिश-ए-ख़ामोश

अज़ीज़ लखनवी

रस्म ऐसों से बढ़ाना ही न था

अज़ीज़ लखनवी

ज़हर का जाम ही दे ज़हर भी है आब-ए-हयात

अज़ीज़ हामिद मदनी

महक में ज़हर की इक लहर भी ख़्वाबीदा रहती है

अज़ीज़ हामिद मदनी

तल्ख़-तर और ज़रा बादा-ए-साफ़ी साक़ी

अज़ीज़ हामिद मदनी

मिरी आँखें गवाह-ए-तल'अत-ए-आतिश हुईं जल कर

अज़ीज़ हामिद मदनी

हिकायत-ए-हुस्न-ए-यार लिखना हदीस-ए-मीना-ओ-जाम कहना

अज़ीज़ हामिद मदनी

शिव तो नहीं हम फिर भी हम ने दुनिया भर के ज़हर पिए

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

हम कोई नादान नहीं कि बच्चों की सी बात करें

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

ख़ुद-कुशी के लिए थोड़ा सा ये काफ़ी है मगर

अज़हर इनायती

अजब जुनून है ये इंतिक़ाम का जज़्बा

अज़हर इनायती

वो मेरा यार था मुझ को न ये ख़याल आया

अज़हर इनायती

कोशिशें कर के दिल बुरा किया था

अज़हर फ़राग़

लहजे और आवाज़ में रक्खा जाता है

अज़हर अदीब

लहजे और आवाज़ में रक्खा जाता है

अज़हर अदीब

ख़ुद हमीं को राहतों के कैफ़ का चसका न था

आज़ाद गुलाटी

ये किस मक़ाम पे पहुँचा है कारवान-ए-वफ़ा

अय्यूब साबिर

रहगुज़ारों में रौशनी के लिए

अय्यूब रूमानी

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