शिव तो नहीं हम फिर भी हम ने दुनिया भर के ज़हर पिए
इतनी कड़वाहट है मुँह में कैसे मीठी बात करें
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ख़्वाब दरवाज़ों से दाख़िल नहीं होते लेकिन
मेरी तस्वीर बनाने को जो हाथ उठता है
लहू से उठ के घटाओं के दिल बरसते हैं
हम से ज़ियादा कौन समझता है ग़म की गहराई को
तमाम उम्र किसी और नाम से मुझ को
मैं जब भी उस की उदासी से ऊब जाऊँगी
मैं ने ये सोच के बोए नहीं ख़्वाबों के दरख़्त
इस घर के चप्पे चप्पे पर छाप है रहने वाले की
गए मौसम में मैं ने क्यूँ न काटी फ़स्ल ख़्वाबों की
ज़र्द चेहरों की किताबें भी हैं कितनी मक़्बूल
वो इक नज़र से मुझे बे-असास कर देगा
मैं किसी जन्म की यादों पे पड़ा पर्दा हूँ