तुम को भुला रही थी कि तुम याद आ गए
मैं ज़हर खा रही थी कि तुम याद गए
Mir Taqi Mir
Gulzar
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Wasi Shah
Rahat Indori
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(2386) Peoples Rate This
मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था
दफ़ना दिया गया मुझे चाँदी की क़ब्र में
ये किसी नाम का नहीं होता
कुछ दिन से ज़िंदगी मुझे पहचानती नहीं
ग़म की उलझी हुई लकीरों में
आग बहते हुए पानी में लगाने आई
अपनी आवारा-मिज़ाजी को नया नाम न दो
रंग इस मौसम में भरना चाहिए
वक़्त बर्बाद करती रहती हूँ
तुझ को दुनिया के साथ चलना है