अपनी आवारा-मिज़ाजी को नया नाम न दो
मुझ को जन्नत से निकलवाने का इल्ज़ाम न दो
मय-कदे बंद भी हो जाएँ तो पर्वा न करो
किसी कम-ज़र्फ़ के हाथों में मगर जाम न दो
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Rahat Indori
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Anwar Masood
Wasi Shah
Gulzar
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माँ मुझे देख के नाराज़ न हो जाए कहीं
साथ छूटे थे साथ छूटे हैं
मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था
तुम को भुला रही थी कि तुम याद आ गए
जंगल दिखाई देगा अगर ये यहाँ न हों
तिरी यादों को प्यार करती हूँ
मजबूरियों के नाम पे सब छोड़ना पड़ा
दफ़ना दिया गया मुझे चाँदी की क़ब्र में
ग़म की उलझी हुई लकीरों में
ये किसी नाम का नहीं होता