मजबूरियों के नाम पे सब छोड़ना पड़ा
दिल तोड़ना कठिन था मगर तोड़ना पड़ा
मेरी पसंद और थी सब की पसंद और
इतनी ज़रा सी बात घर छोड़ना पड़ा
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
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Rahat Indori
Parveen Shakir
Allama Iqbal
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कुछ दिन से ज़िंदगी मुझे पहचानती नहीं
तुम को भुला रही थी कि तुम याद आ गए
वक़्त बर्बाद करती रहती हूँ
दफ़ना दिया गया मुझे चाँदी की क़ब्र में
जिन के आँगन में अमीरी का शजर लगता है
तुझ को दुनिया के साथ चलना है
साथ छूटे थे साथ छूटे हैं
रंग इस मौसम में भरना चाहिए
तिरी यादों को प्यार करती हूँ
आग बहते हुए पानी में लगाने आई
अपनी आवारा-मिज़ाजी को नया नाम न दो